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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[कर्मनिरूपण
प्रशस्तपादभाष्यम् तत्सम्बद्धेष्वपि कथम् ? यदा हस्तेन मुसलं गृहीत्वेच्छां करोति 'उत्क्षिपामि हस्तेन मुसलम्' इति, तदनन्तरं प्रयत्नस्तमपेक्षमाणा(प्र० )शरीर और उनके अवयवों से संयुक्त द्रव्यों में कैसे ? ( क्रिया उत्पन्न होती है ? ) ( उ० ) जब मूसल को हाथ में लेकर कोई यह इच्छा करता है कि 'मैं हाथ से मूसल को ऊपर की ओर उछाल' उसके बाद प्रयत्न की उत्पत्ति होती है । इस प्रयत्न और हाथ एवं आत्मा के संयोग इन दोनों से उसी
न्यायकन्दली सत्यपि प्रयत्ने गुरुत्वरहितस्य उत्क्षेपणापक्षेपणयोरशक्यकरणत्वाद् गुरुत्वस्यापि कारणत्वम् । हस्तवत्सर्वशरीरावयवेषु पादादिषु शरीरे चेति । पादे कर्मोत्पत्तौ पादवत्यात्मप्रदेशे प्रयत्नो निमित्तकारणम्, पादात्मसंयोगोऽसमवायिकारणम् । एवं सर्वत्र शरीरावयवनियोत्पत्तौ द्रष्टव्यम्। शरीरक्रियोत्पत्तावपि शरीरात्मसंयोगोऽसमवायिकारणम्, शरीरवदात्मप्रदेशे प्रयत्नो निमित्तकारणम् ।
तत्सम्बद्धेषु शरीरसम्बद्धेष, शरीरावयवसम्बद्धष्वपि कथं कर्मोत्पत्तिरिति प्रश्नार्थः । यदा हस्तेन मुसलं गृहीत्वेच्छां करोति 'उत्क्षिपामि हस्तेन मुसलम्' इति, तदनन्तरं तस्या इच्छाया अनन्तरम्, प्रयत्नः हस्तेन मुसलमूर्ध्वमुत्क्षिपामोति हस्तमुसलयोर्युगपदुत्क्षेपणेच्छातः प्रयत्नो जायमानस्तयोर्युगपदुत्क्षेपणप्रयत्न के रहते हुए भी गुरुत्व से सर्वथा रहित द्रव्य का ऊपर उठना या नीचे गिरना नहीं होता, अतः गुरुत्व भी उसका कारण है। 'हस्तवत् सर्वशरीरावयवेषु पादादिषु शरीरे चेति' अर्थात् पैर में जो क्रिया की उत्पत्ति होगी, उसमें आत्मा के पादवाले प्रदेश में उत्पन्न प्रयत्न निमित्तकारण होगा और पैर और आत्मा का संयोग असमवायिकारण होगा। इसी प्रकार शरीर के सभी अवयवों में क्रिया की उत्पत्ति के प्रसङ्ग में समझना चाहिए। इसी प्रकार यह भी समझना चाहिए कि शरीर ( रूप अवयवी ) में जो क्रिया की उत्पत्ति होगी, उसका असमवायिकारण शरीर और आत्मा का संयोग ही होगा और आत्मा के शरीरवाले प्रदेश में उत्पन्न प्रयत्न उसका निमित्तकारण होगा।
'तत्सम्बद्धेषु' इत्यादि प्रश्न शाक्य का अभिप्राय यह है कि शरीर के साथ और उसके अवयवों के साथ सम्बद्ध अन्य द्रव्यों में क्रिया की उत्पत्ति किस क्रम से होती है ? 'यदा हस्तेन मुसलं गृहीत्वेच्छां करोति-उत्क्षिपामि हस्तेन मुसलमिति' अर्थात् जिस समय हाथ में मूसल को लेकर पुरुष यह इच्छा करता है कि 'मैं मसल को ऊपर की तरफ उछालू' 'तदनन्तरम्' अर्थात् उसके बाद 'प्रयत्नः' अर्थात् 'हाथ से मूसल को लेकर मैं ऊपर की तरफ उछालं' हाथ और मसल को एक ही समय ऊपर की तरफ उछालने की इस आकार की इच्छा से उत्पन्न होने वाला प्रयत्न, हाथ और मूसल को एक
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