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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
ऽविशिष्टस्तस्माद् गमनमेव सर्वमिति । न, वर्गशः प्रत्ययानुवृत्तिव्यावृत्तिदर्शनात् । इहोत्क्षेपणं परत्रापक्षेपणमित्येवमादि सर्वत्र वर्गशः प्रत्ययानुवृत्तिव्यावृत्ती दृष्टे, तद्धेतुः सामान्य विशेषभेदोऽवगम्यते । तेषामुदाद्युपसर्गविशेषात् प्रतिनियत दिग्विशिष्टकार्यारम्भत्वादुपलक्षण
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[ कर्मनिरूपण
( उ ) ऐसी बात नहीं है, क्योंकि उत्क्षेपणादि सभी क्रिया के समूहों में विभिन्न प्रकार की अनुवृत्तिप्रतीतियाँ ( समानजातीय प्रतीति ) एवं व्यावृत्तिप्रतीतियाँ होती हैं । ( विशदार्थ यह है ) कि 'यहाँ उत्क्षेपण क्रिया है' और 'दूसरी जगह अपक्षेपण क्रिया है' इस प्रकार प्रत्येक क्रिया में भिन्नभिन्न प्रकार की अनुवृत्तिप्रतीति और व्यावृत्तिप्रतीति उपलब्ध होती है । इससे यह सिद्ध होता है कि उन विभिन्न प्रतीतियों के सामान्य और विशेष के भेद ही कारण हैं, अर्थात् गमनत्व रूप सामान्य जातियों और उत्क्षेपणत्वादि रूप विशेषजातियों की विभिन्नता ही कारण है । उत्क्षेपणादि शब्दों के 'उद्'
न्यायकन्दली
दिषूर्ध्वं गच्छति, अधो गच्छतीति प्रत्ययदर्शनात् सर्वमेवेदमुत्क्षेपणादिकं गमनमेव । समाधत्ते-नेति । यत् त्वयोक्तं तन्न, उत्क्षेपणादिषु वर्गश: प्रतिवर्ग प्रत्ययानुवृत्तिव्यावृत्त्योदर्शनात् । गोवर्गे अश्वादिवर्गव्यावृत्या प्रत्ययानुगमदर्शनाद गोत्वं कल्प्यते यथा, तथोत्क्षेपणादिषु प्रतिवर्गमितरवर्गव्यावृत्त्या प्रत्ययानुगमदर्शनादुत्क्षेपणत्वादिसामान्य कल्पनेत्यभिप्रायः । अस्य विवरणं सुगमम् ।
तेषामिति । उपलक्षणभेदोऽपीत्यपिशब्दः कार्यारम्भादित्यस्मात् परो व्यक्तिरनयेत्युपलक्षणं
द्रष्टव्यः 1
उपलक्ष्यतेऽन्यविलक्षणतया
प्रतिपाद्यते
किया गया है, वह अयुक्त है, क्योंकि 'गमन' रूप क्रिया से उत्क्षेपणादि शेष चार क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं है । 'सर्व हि' इत्यादि ग्रन्थ के द्वारा उत्क्षेपणादि क्रियाओं में गमन का जो अभेद कहा गया है उसका समर्थन करते हैं । अर्थात् 'ऊपर की तरफ जाता है, नीचे की तरफ आता है' इसी प्रकार की ही प्रतीतियाँ उत्क्षेपणादि की भी होती हैं, इससे समझते हैं कि उत्क्षेपणादि सभी क्रियायें वस्तुतः गमन रूप ही हैं । 'न' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा उसका समाधान करते हैं । अर्थात् तुमने जो उत्क्षेपणादि क्रियाओं को गमन रूप क्रिया से अभिन्न कहा है, वह ठीक नही है, क्योंकि 'वर्गश:' अर्थात् उत्क्षेपणादि प्रत्येक वर्ग को क्रियाओं में समान आकार की प्रतीतियाँ ( अनुवृत्तिप्रत्यय ) होती हैं । एवं उक्त वर्ग की उत्क्षेपणादि प्रत्येक व्यक्ति में अपक्षेपणादि अपर वर्ग की क्रिया से भिन्नत्व की प्रतीति रूप व्यावृत्तिबुद्धि भी होती है । जैसे कि गो वर्ग की प्रत्येक व्यक्ति में 'अयं गौ:' इस आकार की समानकारक प्रतीति होती है, एवं अश्वादि वर्ग के प्रत्येक