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७०. न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[कर्मनिरूपणप्रशस्तपादभाष्यम् तद्विपरीतसंयोगविभागकारणं कर्मापक्षेपणम् ।
ऋजुनो द्रव्यस्याग्रावयवानां तद्देशैविभागः संयोगश्च, मूलप्रदेशैर्येन कर्मणावयवी कुटिलः सञ्जायते तदाकुञ्चनम् ।
तद्विपर्ययेण संयोगविभागोत्पत्तौ येन कर्मणावयवी ऋजुः सम्पद्यते तत् प्रसारणम् ।
यदनियतदिप्रदेशसंयोगविभागकारणं तद् गमनमिति ।
संयोग और विभाग के ( अन्यानपेक्ष) कारणीभूत ( एवं उत्क्षेपण के ) विपरीत क्रिया को ही 'अपक्षेपण' कहते हैं।
कोमल द्रव्य के आगे के अवयवों का उनके आश्रय प्रदेश के साथ विभाग और मल प्रदेशों के साथ संयोग जिस क्रिया से हो ( अर्थात् ) जिस क्रिया से अवयवी टेढ़ा हो जाय उसी को 'आकुञ्चन' कहते हैं।
जिस क्रिया से उक्त संयोग के विपरीत संयोग और उक्त विभाग के विपरीत विभाग की उत्पत्ति होने पर ( कुटिल ) अवयवी सीधा हो जाय उसी क्रिया को प्रसारण' कहते हैं :
जो क्रिया अनियमित रूप से जिस किसी दिक् प्रदेश के साथ संयोग और विभाग को उत्पन्न करे, उस क्रिया को गमन कहते हैं।
न्यायकन्दली शरीरावयवेषु हस्तादिषु तत्सम्बद्धेषु मुसलादिषु च यदूर्ध्वभाग्भिः प्रदेशैः संयोगकारणम्, अधोभाग्भिश्च विभागकारणं गुरुत्वसंयोगप्रयत्नेभ्यो जायते तदुत्क्षपणम्।
तद्विपरीतेति । अधोदेशसंयोगकारणमूर्ध्वदेशविभागकारणं कर्मापक्षेपणमित्यर्थः।
ऋजुन इति। तद्देशैर ग्रावयवसम्बद्धराकाशादिदेशैः सञ्जायते इति, येन कर्मणेति सम्बन्धः ।
अग्रावयवानां मूलप्रदेशविभागादुत्तरदेशसंयोगोत्पत्तौ सत्यामित्यर्थः । उसे कहते है जिससे शरीर के हाथ प्रभृति अवयवों में एवं हाथ से युक्त मुसल प्रभृति द्रव्यों में ऊपर के देशों के साथ संयोग की उत्पत्ति हो, और वह स्वयं गुरुत्व, संयोग और प्रयत्न से उत्पन्न हो।
___तद्विपरीतेति' अर्थात् नीचे के देशों के साथ संयोग का कारण और ऊपर के देशों से विभाग का कारण कर्म ही 'अपक्षेपण' है।
'ऋजुन इति' इस वाक्य में प्रयुक्त 'तद्देशः' इस शब्द के द्वारा 'आगे के अवयवों से सम्बद्ध आकाशादि देशों के साथ संयोग उत्पन्न होता है जिस क्रिया से" ऐसा अवय
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