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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् कारणः । स द्विविधो वर्णलक्षणो ध्वनिलक्षणश्च । तत्र अकारादिवर्णलक्षणः, शङ्खादिनिमित्तो ध्वनिलक्षणश्च । तत्र वर्षसंयोग, विभाग और शब्द ( इन तीनों में से किसी ) से उसकी उत्पत्ति होती है। वह अपने आश्रयद्रव्य के किसी एक देश में ही रहता है। वह अपने समानजातीय (शब्द) और विजातीय ( संयोग और विभाग इन दोनों) से उत्पन्न होता है। यह (१) वर्ण और ( २) ध्वनि भेद से दो प्रकार का है। उनमें अकारादि शब्द वर्णरूप हैं, और शङ्खादि से उत्पन्न शब्द ध्वनिरूप हैं ।
न्यायकन्दली वर्तिनस्तुभयथा विरुध्यन्ते । संयोगविभागशब्दजः । आद्यः शब्दः संयोगाद् विभागाच्च जायते, तत्पूर्वकस्तु शब्दादिति विवेकः ।
प्रदेशवृत्तिः अव्याप्यवृत्तिरित्यर्थः। एतच्चोपपादितम् । समानासमान. जातीयेति। शब्दजः शब्दः समानजातीयकारणः। संयोगजविभागजश्च अस. मानजातीयकारणः । स द्विविधो वर्णलक्षणः, ध्वनिलक्षणश्च । अकारादिवर्णलक्षणः, शङ्खादिनिमित्तो ध्वनिलक्षणः। तत्र तयोर्मध्ये, वर्णलक्षणस्योत्पत्तिरुच्यते। आत्ममनसोः संयोगात् पूर्वानुभूतवर्णस्मृत्यपेक्षात् तत्सदृशवोंउचारण कर्तव्ये इच्छा भवति । ततः प्रयत्नस्तं प्रयत्नं निमित्तकारणमपेक्षमाणादात्मवायुसंयोगादसमवायिकारणात् कौष्ठ्यवायौ कर्म जायते । स च वायुरूवं गच्छन् कण्ठादीनभिहन्ति हत्कण्ठताल्वादीन् प्रदेशानभिहन्ति । ततोऽ एवं अन्तिम शब्द अपने कारणीभूत अपने से अव्यवहितपूर्व के शब्द से विनष्ट होता है, क्योंकि अन्तिम शब्द के विनाश का कोई और कारण नहीं हो सकता। बीच के जो पब्द है, कार्य शब्द और कारणीभूत शब्द दोनों ही उनके विरोधी हैं । 'संयोगविभागसन्दजः' अर्थात् प्रथम शब्द ( कभी संयोग से और कभी) विभाग में उत्पन्न होता है, अतः उनके दोनों ही कारण हैं। मध्य के सभी शब्द शब्द से ही जन्म लेते हैं। प्रदेशवृत्तिः' अर्थात् शब्द अव्याप्यवृत्ति है ( अपने आश्रय के सभी देशों में नहीं रहता )। 'शब्द किस प्रकार अव्याप्यवृत्ति है' इसका उपपाटन ( शब्द के साधर्म्यप्रकरण में ) कर चुके हैं। 'समानासमानजातीयेति' शब्द से जिस शब्द की उत्पत्ति होती है, वह समानजातीयकारणक है। संयोग और विभाग से जिन शब्दों की उत्पत्ति होती है, उनके कारण शन्द के असमानजातीय हैं।
___'स द्विविधो वर्णलक्षणो ध्वनिलक्षणश्च' अकारादि वर्णलक्षण शब्द है, एवं शङ्ख प्रभृति से जो शब्द उत्पन्न होते हैं, वे ध्वनिलक्षण शब्द हैं । 'तत्र' अर्थात् उनके दोनों प्रकार के शब्दों में वर्णलक्षण शब्द की उत्पत्ति ( को रीति ) कहते हैं। अनुभत वर्ण की स्मृति के साहाय्य से आत्मा और मन के संयोग के द्वारा सर्वप्रथम उस वर्ग के
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