Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 769
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६९४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् प्रशस्तपादभाष्यम् लक्षणस्योत्पत्तिरात्ममनसोः संयोगात् स्मृत्यपेक्षाद् वर्णोच्चारणेच्छा, तदनन्तरं प्रयत्नः, तमपेक्षमाणादात्मवायुसंयोगाद् वायौ कर्म जायते । वर्णात्मक शब्द की उत्पत्ति इस प्रकार होती है कि स्मृतिसहकृत आत्मा और मन के संयोग के द्वारा वर्ण के उच्चारण की इच्छा उत्पन्न होती है । इसके बाद तदनुकूल प्रयत्न की उत्पत्ति होती है । इस प्रयत्न के द्वारा आत्मा एवं वायु के संयोग से वायु में क्रिया उत्पन्न होती है । न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गुणनिरूपणे शब्द भिघातानन्तरं स्थानस्य कण्ठादेः कौष्ठयवायुना सह यः संयोगस्तन्निमित्तकारणभूतमपेक्षमाणात् स्थानाकाशसंयोगात् समवायिकारणाद् वर्णोत्पत्तिः । अवर्णलक्षणोऽपि भेरीदण्डसंयोगाद् दण्डगतं वेगमपेक्षमाणाद् भेर्याकाशसंयोगादुपजायते । भेर्याकाशसंयोगोऽसमवायिकारणम्, मेरीदण्डसंयोगो दण्डगतश्च वेगो निमित्तकारणम् । वेणुपर्वविभागाद् वेण्वाकाशविभागाच्च शब्दो जायते । शब्दाच्च शब्दनिष्पत्ति कथयति - शब्दात् संयोगविभागनिष्पन्नाद् वीचीसन्तानवच्छब्द सन्तानः, यथा जलवीच्या तदव्यवहिते देशे वीच्यन्तरमुपजायते, ततोऽप्यन्यत्, ततोऽप्यन्यदित्यनेन क्रमेण वीचीसन्तानो भवति, तथा शब्दादुत्पन्नात् तदव्यवहिते देशे समानवर्ण के उच्चारण की इच्छा होती है । इसके बाद 'प्रयत्न' अर्थात् समानवर्ण के उच्चारण के अनुकूल प्रयत्न की उत्पत्ति होती है । उस प्रयत्न रूप निमित्त कारण के साहाय्य से आत्मा और वायु के संयोग रूप असमवायिकारण के द्वारा पुरुष के कोष्ठगत वायु में क्रिया उत्पन्न होती है । वह सक्रिय वायु ऊपर की तरफ आते हुए कण्ठादि स्थानो में आघात उत्पन्न करता है अर्थात् हृदय, कण्ठ तालु प्रभृति वर्णों के जो उच्चारणस्थान है, वहाँ आघात करता है । इस अभिघात के वाद कौष्ठय वायु के साथ कण्ठादि स्थानों का जो संयोग होता है, उस संयोग रूप निमित्त कारण के साहाय्य से कण्ठादि स्थान और आकाश इन दोनों के संयोग रूप असमवायिकारण के द्वारा वर्ण रूप शब्द की उत्पत्ति होती है । अवर्णरूप शब्द ( ध्वनि ) भी दण्ड में उत्पन्न वेग के साहाय्य से भेरी और आकाश के संयोग के द्वारा उत्पन्न होता है । ( अर्थात् इस ध्वनि रूप शब्द के प्रति ) भेरी और आकाश का संयोग असमवायिकारण है, एवं भेरी और दण्ड का संगोग और दण्ड में रहनेवाला वेग, ये दोनों निमित्त कारण हैं । बाँस और उसके गाँठ इन दोनों के विभाग एवं बाँस और आकाश के विभाग, इन दोनों से भी शब्द की उत्पत्ति होती है । For Private And Personal 'शब्दात् संयोगविभागनिष्पन्नाद्वीची सन्दान वच्छन्द सन्तान:' इस सन्दर्भ से शब्द - जनित शब्द का निरूपण करते हैं । अर्थात् जिस प्रकार जल के एक तरस से उसके अति निकट के जल प्रदेश में दूसरा तरङ्ग उत्पन्न होता है, उसी प्रकार ( संयोग और

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