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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[गुणनिरूपणे इच्छाप्रशस्तपादभाष्यम् स्वार्थ परार्थं वाऽप्राप्तप्रार्थनेच्छा । सा चात्ममनसोः संयोगात् सुखाद्यपेक्षात् स्मृत्यपेक्षाद् वोत्पद्यते । प्रयत्नस्मृतिधर्माधर्महेतुः ।
अपने लिए या दूसरों के लिए अप्राप्तवस्तु को प्रार्थना ही 'इच्छा' है। यह ( इच्छा ) सुख अथवा स्मृति से साहाय्यप्राप्त आत्मा और मन के संयोग से उत्पन्न होती है। वह प्रयत्न, स्मृति, धर्म और अधर्म का कारण है
न्यायकन्दली उपहन्यतेऽनेनेत्युपघातः, उपघातलक्षणम् उपधातस्वभावम् । दुःखमुपजातं प्रतिकूलस्वभावतया स्वात्मविषयमनुभवं कुर्वदात्मानमुपहन्ति । एतद् विवृणोति-- अनिष्टोपलब्धीत्यादिना। अमर्षोऽसहिष्णुता द्वेष इति यावत् । उपघातो दुःखानुभवः, दैन्यं विच्छायता, तेषां निमित्तम् । दुःखे सति तदनुभवलक्षण आत्मोपघातः स्यात् । अतीतेषु सर्पादिषु स्मृतिजम्, अनागतेषु सङ्कल्पजमिति पूर्ववद् व्याख्यानम्।
स्वार्थं परार्थं वाऽप्राप्तप्रार्थनेच्छा। अप्राप्तस्य वस्तुनः स्वार्थ प्रति या प्रार्थना इदं मे भूयादिति, परार्थं वा प्रार्थना अस्येदं भवत्विति सेच्छा। सा चात्ममनसोः संयोगात् सुखाद्यपेक्षात् स्मृत्यपेक्षाद् वोत्पद्यते। अनागते
इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा दुःख की व्याख्या करते हैं। प्रकृत में 'उपघात' शब्द 'उपहन्यते अनेन' इस व्युत्पत्ति के द्वारा सिद्ध है। 'उपघातलक्षण' अर्थात् दुःख उपघातस्वभाव का है । दुःख की उत्पत्ति ही अपने आश्रयीभूत आत्मा की इच्छा के प्रतिकूल होती है, अतः वह अपनी उत्तत्ति के द्वारा आत्मा का 'उपहनन' करती है । 'अनिष्टोपलब्धि' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा उसी का विवरण देते हैं । 'अमर्ष' शब्द का अर्थ है असहिष्णुता, फलतः द्वेष । 'उपघात' शब्द का अर्थ है दुःख का अनुभव । दैन्य शब्द का अर्थ है दीनता । दुःख इन सबों का कारण है । दुःख के रहने पर आत्मा का दुःखानुभव रूप उपघात होता है । अतीत साँप प्रभृति वस्तुओं से उनकी स्मृति के द्वारा दुःख उत्पन्न होता है। अनागत अनिष्ट वस्तुओं के संकल्प से दुःख उत्पन्न होता है। इस प्रकार सुख प्रकरण में कथित रीति से यहाँ भी व्याख्या करनी चाहिए।
स्वार्थ परार्थं वाऽप्राप्तप्रार्थनेच्छा' अर्थात् अपने लिए या दूगरों के लिए किसी अप्राप्त वस्तु की जो 'प्रार्थना' अर्थात् यह मुझे मिले' या 'यह इस व्यक्ति को मिले' इस प्रकार की जो प्रार्थना वही 'इच्छा' है । 'सा चात्म मनसोः संयोगात् सुखाद्यपेक्षात् स्मृत्यपेक्षाद्वोत्पद्यते" सुख के साधनीभूत भविष्य वस्तु की इच्छा होती है, अतः उस विषय से होनेवाला सुख
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