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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणनिरूपणे इच्छा
प्रशस्तपादभाष्यम् विषयत्यागेच्छा वैराग्यम् । परवचनेच्छा उपधा। अन्तर्निगूढेच्छा भावः । चिकीर्षा जिहीत्यादिक्रियाभेदादिच्छाभेदा भवन्ति । को ठगने की इच्छा ही 'उपधा' है। भीतर छिपी हुई इच्छा ही 'भाव' है। ( इसी प्रकार ) चिकीर्षा ( कुछ करने की इच्छा ) जिहीर्षा (छोड़ने की इच्छा ) इत्यादि भी ( अपने अन्तर्गत ) क्रियाओं के भेद के रहने पर भी ( वस्तुतः ) इच्छा के ही प्रभेद हैं।
न्यायकन्दली मैथुनेच्छा काम इति । निरुपपदः कामशब्दो मैथुनेच्छायामेव प्रवर्तते, अन्यत्र तस्य पदान्तरसमभिव्याहारात् प्रवृत्तिः, यथा स्वर्गकामो यजेत इति । अभ्यवहारेच्छा अभिलाषः । अभ्यवहारो भोजनम्, तत्रेच्छा अभिलाषः । पुनः पुनविषयानुरञ्जनेच्छा रागः। पुनविषयाणां भोगेच्छा राग इत्यर्थः । अनासन्नक्रियेच्छा सङ्कल्पः । अनागतस्याथस्य करणेच्छा सङ्कल्पः । स्वार्थमनपेक्ष्य परदुःखप्रहाणेच्छा कारुण्यम् । स्वार्थप्रयोजनं किमप्यनभिसन्धाय या परदुःखप्रहाणे अपनयने इच्छा सा कारुण्यम् । दोषदर्शनाद् दुःखहेतुत्वावगमे विषयाणां परित्यागे इच्छा वैराग्यम् । परवञ्चनेच्छा परप्रतारणेच्छा उपधा। अन्तनिगूढच्छा लिङ्गराविर्भाविता येच्छा सा भावः । चिकीर्षा जिहीर्षा इत्यादिक्रियाभेदादिच्छाभेदा भवन्ति । करणेच्छा चिकीर्षा, हरणेच्छा जिहीर्षा गमनेच्छा जिगमिषेत्येवमादय इच्छाभेदाः क्रियाभेदाद् भवन्ति । प्रभेद हैं, स्वतन्त्र गुण नही" उसी का उपपादन "मैथुनेच्छा कामः' इत्यादि सन्दर्भ से करते हैं। बिना विशेषण का केवल 'काम' शब्द मैथुन की इच्छा में ही प्रयुक्त होता है, दूसरी तरह की इच्छाओं में 'काम' शब्द की प्रवृत्ति दूसरे पदों के साथ रहने से ही होती है । जैसे कि 'स्वर्गकामो यजेत' इत्यादि । 'अभ्यवहारेच्छा अभिलाषः' इस वाक्य के 'अभ्यवहार' शब्द का अर्थ है भोजन, उसकी इच्छा ही 'अभिलाष' शब्द से कही जाती है । 'पुनः पुनविषयानुरञ्जनेच्छा रागः' अर्थात् विषयों को बार बार भोगने की इच्छा हो राग' है। 'अनासन्न क्रियेच्छा संकल्पः' अर्थात् भविष्य काम को करने की इच्छा ही 'संकल्प' है। 'स्वार्थमनपेक्ष्य दुःखप्रहाणेच्छा कारुण्यम्' अपने किसी प्रयोजन के साधन की अभिसन्धि के बिना जो दूसरों को दुःख से छुड़ाने की इच्छा, उसे ही 'कारुण्य' कहते हैं । दोषदर्शनात्' अर्थात् दुःख के कारणों को अनिष्ट समझने पर विषयों को छोड़ने की इच्छा ही वैराग्य' है। 'परवञ्चनेच्छा' दूसरों को ठगने की इच्छा को हौ 'उपधा' कहते हैं । 'अन्तनिगूढेच्छा' अर्थात् लिङ्गो से ही ज्ञात होनेवाली इच्छा को 'भाव' कहते हैं । 'चिकीर्षा' जिहीर्षा' इत्यादि क्रियाभेदादिच्छाभेदा भवन्ति' काम करने की इच्छा को ही 'चिकी' कहते हैं। किसी की वस्तु को अपहरण करने की इच्छा को ही 'जिहीर्षा' कहते हैं ।
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