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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् द्रव्यत्वं स्यन्दनकर्मकारणम् । त्रिद्रव्यवृत्ति । तत्तु द्विविधम् ।
जिस गुण से स्यन्दन ( अर्थात फैलने की ) क्रिया उत्पन्न हो वही 'द्रवत्व' है । यह (१) सांसिद्धिक ( स्वाभाविक ) और (२) नैमित्तिक
न्यायकन्दली
हि नो गुरुत्वम् । एतेनैतत् प्रत्युक्तं यदुक्तमपरैः--''अवयविगुरुत्वकार्यस्यावनतिविशेषस्यानुपलम्भादवयविनि गुरुत्वाभावः" इति, अवयविनः पतनाभावप्रसङ्गात् । अथावयवानां गुरुत्वादेव तस्य पतनम् ? तदावयवानामपि स्वावयवगुरुत्वात् पतनमिति सर्वत्र कार्ये तदुच्छेदः । अथ व्यधिकरणेभ्यः स्वावयवगुरुत्वेभ्योऽवयवानां पतनासम्भवात् तेषु गुरुत्वं कल्प्यते, तदा अवयविन्यपि कल्पनीयम्, न्यायस्य समानत्वात् । यत् पुनरवयविगुरुत्वस्य कार्यातिरेको न गृह्यते, तदवयवावयविगुरुत्वभेदस्याल्पान्तरत्वात् । यथा महति द्रव्ये उन्मीयमाने तत्पतितसूक्ष्मद्रव्यान्तरगुरुत्वकार्याग्रहणम् ।
है, क्योंकि अवयवों के गुरुत्व से जितनी अवनति होती है, उन अवयवों से बने अवयवी के द्वारा उससे अधिक अवनति नहीं देखी जाती है, अतः अवयवों में ही गुरुत्व है, अवयवी में नहीं । गुरुत्व के उक्त लक्षण से उनके उक्त मत का भी खण्डन हो जाता है ( क्योंकि उस लक्षण में गुरुत्व को अवयवी में रहना मान लिया गया है ) क्योंकि अवयवी में गुरुत्व यदि न मानें तो अवयवी का पतन न हो सकेगा। यदि अवयवों के गुरुत्व से ही अवयवी का भी पतन मानें, तो फिर उन अवयवों का पतन भी उनके अवयवों से ही होगा। उनमें भी गुरुत्व का मानना व्यर्थ होगा। फलतः किसी भी कार्य द्रव्य में गुरुत्व का मानना सम्भव न होगा। यदि यह कहें कि एक अधिकरण में रहनेवाले गुरुत्व से उससे भिन्न द्रव्य में पतन का होना सम्भव नहीं है, अतः अवयवों में गुरुत्व मानते हैं (क्योंकि अवयवों से उसके अवयव भिन्न हैं ) तो फिर इसी युक्ति से अययवी में भी गुरुत्व का मानना अनिवार्य है, क्योंकि अवयवों के अवयव भी तो अपने अवयवी से भिन्न हैं, अतः अवयवों में रहनेवाला गुरुत्व अवयवों से भिन्न अवयवी में पतन का उत्पादन कैसे कर सकता है ? यह जो आक्षेप किया गया है कि अवयवों के गुरुत्व कार्य अवनति-विशेष से अवयवी के कार्य अवनतिविशेष में कोई अन्तर उपलब्ध नहीं होता। अतः अवयवों में ही गुरुत्व है अवयवी में नहीं ) इस आक्षेप के उत्तर में कहना है कि अवयवी के गुरुत्व से अवयवों के गुरुत्व में अत्यन्त अल्प अन्तर है, अतः उन दोनों से होनेवाले कार्यों का अन्तर गृहीत नहीं हो पाता। जैसे किसी भारी द्रव्य को दूसरी बार तौलने पर उससे कुछ कणों के झड़ जाने के बाद भी उसके गुरुत्व के कार्य अवनतियों में कोई अन्तर उपलब्ध नहीं होता है।
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