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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणनिरूपणे मोक्ष
प्रशस्तपादभाष्यम् पूर्वसञ्चितयोश्चोपभोगानिरोधे सन्तोषसुखं शरीरपरिच्छेदं चोत्पाद्य रागादिनिवृत्तौ निवृत्तिलक्षणः केवलो धर्मः परमार्थदर्शन सुखं कृत्वा निवर्त्तते । तदा निरोधात् निर्वीजस्यात्मनः शरीरादिनिवृत्तिः, पुनः शरीराद्यनुत्पत्तौ दग्धेन्धनानलवदुपशमो मोक्ष इति । होता है। विरक्त पुरुष में राग और द्वेष की सम्भावना न रहने के कारण राग और द्वेष से होनेवाले धर्म और अधर्म की आगे उत्पत्ति रुक जाती है। पहिले से सञ्चित धर्म और अधर्म का उपभोग से नाश हो जाने के बाद सन्तोषात्मक सुख एवं शरीरपरिच्छेद ( शरीर के प्रति घृणा ) इन दोनों की उत्पत्ति होती है। इनसे रागादि की निवृत्ति होती है। इसके बाद निवृत्तिजनक केवल ( अधर्म से सर्वथा असम्बद्ध ) धर्म आत्मतत्त्वज्ञान की सहायता से ( परम ) सुख को उत्पन्न कर स्वयं भी निवृत्त हो जाता है। निवृत्तिलक्षण उस धर्म की निवृत्ति से उस समय आत्मा संसार के बीज (धर्माधर्मादि ) से रहित हो जाता है, अतः उसके उपभोग के पूर्व-आयतन ( वर्तमान शरीर ) की निवृत्ति हो जाती है, एवं आगे शरीर की उत्पत्ति रुक जाती है। लकड़ी के जल जाने के कारण अग्नि की निवृत्ति की तरह उस समय शरीर का फिर से उत्पन्न न होना ही मोक्ष है।
न्यायकन्दली “सति मूले तद्विपाको जात्यायु गाः" इति । यथाह भगवानक्षपादः-"न प्रवृत्तिः प्रतिसन्धानाय होनक्लेशस्य" इति । पूर्वसञ्चितयोश्च धर्माधर्मयो. निरोध उपभोगात, निवृत्तिफलहेतोश्च कर्मान्तरात्। सन्तोषसुखं शरीरपरि. च्छेदं चोत्पाद्य रागादिनिवृत्तौ निवृत्तिलक्षणः केवलो धर्मः परमार्थदर्शनजं सुखं इन दोनों से उत्पन्न होनेवाले धर्म और अधर्म की उत्पत्ति भी रुक जाती है । जिस प्रकार छिलके से युक्त धान से ही अङ्कुर उत्पन्न होता है उसी प्रकार क्लेश और वासना से युक्त प्रवृत्ति से हो जन्म रूप कार्य की उत्पत्ति होती है। प्रवृत्तियों से जब वासना और क्लेश का सम्वन्ध छूट जाता है, तब उससे आगे जन्म का कार्य उसी प्रकार रुक जाता है, जिस प्रकार छिलके के न रहने से धान के द्वारा अकुर का होना रुक जाता है। जैसा कि 'न प्रवृत्तिः प्रतिसन्धानाय हीनक्लेशस्य' इस सूत्र के द्वारा भगवान् अक्षपाद ने भी कहा है।
पूर्वसञ्चितों का अर्थात् पूर्वसञ्चित धर्म और अधर्म का 'निरोध' उपभोग से होता है । संसारनिवृत्ति रूप फल के कारणीभूत (निवृत्ति रूप) धर्म का विनाश दूसरे धर्म से होता है। 'सन्तोषसुखम्' इत्यादि वाक्य में प्रयुक्त 'निवृत्ति' शब्द 'निवर्त्यते संसारोऽनया' इस
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