________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
६४२
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणनिरूपणे द्रवस्व
प्रशस्तपादभाष्यम्
सांसिद्धिकम्, नैमित्तिकं च । सांसिद्धिकमपां विशेषगुणः। नैमित्तिकं पृथिवीतेजसोः सामान्यगुणः। सांसिद्धिकस्य गुरुत्ववनित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः । सङ्घातदर्शनात् सांसिद्धिकमयुक्तमिति चेन्न, दिव्येन तेजसा संयुक्तानामाप्यानां परमाणनां परस्परं संयोगो द्रव्यारम्भकः सङ्घाभेद से दो प्रकार का है। इनमें सांसिद्धिकद्रवत्व जल का विशेषगुण है और नैमित्तिकद्रवत्व पृथिवी और तेज का सामान्यगुण है। द्रवत्व के नित्यत्व और अनित्यत्व का निर्णय गुरुत्व की तरह समझना चाहिए। (प्र०) ( जल में भी) सङ्घात अर्थात् काठिन्य देखा जाता है, अत: यह कहना अयुक्त है कि जल का द्रवत्व सांसिद्धिक है।
न्यायकन्दली संयोगप्रयत्नसंस्कारविरोधि । गुरुत्वस्य संयोगेन प्रयत्नेन वेगाख्येन च संस्कारेण सह विरोधो विद्यते, तैः प्रतिबद्धस्य स्वकार्याकरणात् । तथा च दोलारूढस्य संयोगेन प्रतिबन्धादपतनम्, प्रयत्नेन प्रतिबन्धादपतनं च शरीरस्य, वेगेन प्रतिबन्धादपतनं बहिःक्षिप्तस्य शरशलाकादेः ।
अस्य चाबादिपरमाणुरूपादिवन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः। यथाप्यपरमाणरूपादयो नित्यास्तथा पार्थिवाप्यपरमाणुष्वपि गुरुत्वम् । यथा चाबादिकार्यद्रव्ये कारणगुणपूर्वप्रक्रमेण रूपादयो जायन्ते, आश्रयविनाशाच्च विनश्यन्ति, तथा गुरुत्वमपि।
'संयोगप्रयत्नसंस्कारविरोधी' । गुरुत्व का विरोध ( अर्थात् अपने आश्रय के अधःपतन रूप कार्य में अक्षमता) संयोग, प्रयत्न, और वेगाख्यसंस्कार इन तीन गुणों से होता है । क्योंकि इनमें से किसी के साथ भी सम्बन्ध रहने पर गुरुत्व से पतन की उत्पत्ति नहीं होती है । संयोग से प्रतिरुद्ध होने के कारण हो पालकी पर चढ़े हुए मनुष्य का पतन नहीं होता है। प्रयत्नरूप प्रतिबन्धक से ही शरीर का पतन नहीं होता है । केवल वेग के ही कारण बाहर फेंका हुआ तीर ( कुछ देर तक ) रुका रहता है।
'अस्य चाबादिपरमाणुरूपादिवन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः' अर्थात् जिस प्रकार जलीय परमाणुओं के रूपादि नित्य होते हैं, उसी प्रकार पार्थिवपरमाणु और जलीयपरमाणु का गुरुत्व भी नित्य है। जैसे कार्य रूप जल में कारणगुणकम से रूपादि की उत्पत्ति होती है, एवं आश्रय के विनाश से उनका विनाश होता है, उसी प्रकार कार्य रूप पाथिव द्रव्य और जलीय द्रव्य इन दोनों के गुरुत्व भी कारणगुण क्रम से ही उत्पन्न होते हैं, और आश्रय के विनाश से ही विनष्ट होते हैं।
For Private And Personal