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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणनिरूपणे संस्कार
प्रशस्तपादभाष्यम् स्थितिस्थापकस्तु स्पर्शवद्र्व्येषु वर्तमानो घनावयवसन्निवेशविशिष्टेषु कालान्तरावस्थायिषु स्वाश्रयमन्यथाकृतं यथावस्थितं स्थापयति । स्थावरजङ्गमविकारेषु धनुःशाखाशृङ्गदन्तास्थिसूत्रवस्त्रा
स्पर्श से युक्त द्रव्यों में रहनेवाले संस्कार का नाम स्थितिस्थापकसंस्कार' है, जो कालान्तर में भी रहनेवाले एवं अवयवों के कठिन संयोग से उत्पन्न अपने आश्रय द्रव्य को दूसरे प्रकार की स्थिति से अपनी स्वरूपस्थिति में ले आता है। स्थितिस्थापक संस्कार का यह ( अपने आश्रय को पूर्वस्थिति में ले आने का ) कार्य टेढ़े किये हुए स्थावर या जङ्गम द्रव्यों के
न्यायकन्दली आदरप्रत्ययजं संस्कारं दर्शयति-प्रयत्नेनेत्यादिना। आदरः प्रयत्नातिशयः, तस्मादपूर्वमर्थं द्रष्टुमिच्छतो यद् विद्युत्सम्पातदर्शनवदर्थदर्शनं तदादर. प्रत्ययः, तमेवापेक्षमाणादात्ममनसोः संयोगात् संस्कारातिशयो जायते, चिरकालातिकमेऽपि तस्यानुच्छेदात् । अत्रोदाहरणम्-यथा देवहदे इत्यादि। देवह्रदे चैत्रमासस्य चित्रानक्षत्रसंयुक्तायां पौर्णमास्यामर्धरात्रे राजतानि सौवर्णानि च पद्मानि दृश्यन्त इति वार्तामवगम्य तस्यां तिथौ दिदक्षया मिलितानां सन्निधीयमानेऽर्धरात्रे प्रयत्नातिशयाच्चक्षुषि मनः स्थापयित्वा स्थितानामुत्थि. तेषु पद्मषु क्षणमात्रदर्शनादादरप्रत्ययात् संस्कारातिशयः कालान्तरेऽपि स्फुटतरस्मृतिहेतुरुपजायते ।
स्थितिस्थापकं कथयति-स्थितिस्थापकस्त्विति। अस्पर्शवद्रब्यवृत्तेर्भावनाख्यात् संस्कारात् स्पर्शवद्रव्यवृत्तित्वेन स्थितिस्थापकस्य विशेष
'प्रयत्नेन' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा 'आदरप्रत्यय' से उत्पन्न होनेवाले संस्कार का निरूपण करते हैं । प्रकृत में 'आदर' शब्द का अर्थ है विशेष प्रकार का प्रयत्न । इस आदर के द्वारा अपूर्व वस्तु को देखने की इच्छा से युक्त पुरुष को गिरती हुई बिजली को देखने की तरह जिस वस्तु का ज्ञान हो, वह ज्ञान ही 'आदर प्रत्यय' है। इसके साहाय्य से ही आत्मा और मन के संयोग से वह विशेष प्रकार का संस्कार उत्पन्न होता है, जो चिरकाल तक विनष्ट नहीं होता। इसी का उदाहरण 'यथा देवह्रदे' इत्यादि से दिखलाया गया है । 'चैत्रपूर्णिमा की आधी रात को यदि चित्रा नक्षत्र पड़ता है, तो उस समय देवह्रद में चाँदी और सोने के कमल दीख पड़ते है' यह सुनकर उन कमलों को देखने के लिए उस रात को उस समय विशेष प्रयत्न के द्वारा मन को चक्षु में सम्बद्ध कर जो देवह्रद के किनारे खड़ा रहता है, वह यदि एक क्षण भर भी उन कमलों को देख लेता है, फिर भी उसका यह देखना यतः 'आदरप्रत्यय' है, अतः इससे होने वाला संस्कार चिरकाल में भी स्मृति को उत्पन्न कर सकता है।
___ स्थितिस्थापकस्तु' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा 'स्थितिस्थापक' संस्कार का निरूपण करते हैं। भावना नाम के संस्कार के आश्रय में स्पर्श नहीं है, और स्थितिस्थापक
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