________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
करणम् ]
www.kobatirth.org
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
६४३
द्रवत्वं स्यन्दनकर्मकारणम् । यत् स्यन्दनकर्मकारणं तद् द्रवत्वमित्यर्थः । त्रिद्रव्यवृत्ति पृथिव्युदकज्वलनवृत्तीत्यर्थः । तत्तु द्विविधमिति । गुरुत्वमेकविधं द्रवत्वं तु द्विविधमिति तुशब्दार्थः । नेमित्तिकं सांसिद्धिकं च । निमित्तं च वह्निसंयोगः, तस्येदं कार्यमिति नैमित्तिकम् । सांसिद्धिकं च स्वभावसिद्धम्,
संयोगानपेक्षमिति यावत् । सांसिद्धिकमपां विशेषगुणः, अन्यत्राभावात् । नैमित्तिक पृथिवोतेजसोः सामान्यगुणः, साधारणत्वात् । सांसिद्धिकस्य द्रवत्वस्य गुरुत्ववन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः । यथा नित्यद्रव्यसमवेतं गुरुत्वं नित्यम्, अनित्यद्रव्यसमवेतं च कार्यकारणगुणपूर्वक माश्रयविनाशाद् विनश्यतीति तथा सांसि - द्विकं द्रवत्वमपि ।
अत्र चोदयति-सङ्घातदर्शनात् सांसिद्धिकद्रवत्वमयुक्तमिति चेत् आप्यस्य हिमकरकादेर्द्रव्यस्य सङ्घातदर्शनात् काठिन्यदर्शनादपां स्वभावसिद्धं द्रवत्व
'द्रवत्वं स्यन्दनकर्मकारणम्' अर्थात् प्रसरण क्रिया का जो कारण वही 'द्रवत्व' है । 'त्रिद्रव्यवृत्ति' अर्थात् पृथिवी, जल और तेज इन तीन द्रव्यों में द्रवत्व रहता है । 'तत्त् द्विविधम्' इस वाक्य में प्रयुक्त 'तु' शब्द से यह सूचित किया गया है कि गुरुत्व तो एक ही प्रकार का है, किन्तु द्रवत्व दो प्रकार का है । 'नैमित्तिकं सांसिद्धिकञ्च' इस वाक्य में 'प्रयुक्त 'नैमित्तिक' शब्द 'निमित्तस्येदं कार्यं नैमित्तिकम्' इस व्युत्पत्ति से निष्पन्न है, एवं इस 'निमित्त' शब्द का अर्थ है वह्नि का संयोग । ( फलतः वह्निप्रभृति तैजस द्रव्य के संयोग रूप निमित्त से उत्पन्न द्रवत्व ही नैमित्तिक द्रवत्व है) स्वाभाविक द्रवत्व को सांसिद्धिक द्रवस्व कहते हैं । फलतः वह्नि प्रभृति तैजस पदार्थों के संयोग के बिना हो जो द्रवत्व उत्पन्न हो उसे सांसिद्धिकद्रवत्व कहते हैं । 'सांसिद्धिकोऽयं विशेषगुणः सांसिद्धिकद्रवत्व जल का विशेष गुण है, क्योंकि वह अन्य द्रव्यों में नहीं है। नैमित्तिकं पृथिवी तेजसोः सामान्यगुण: ' नैमित्तिकद्रवत्व पृथिवी और तेज का सामान्य ही गुण हैं. क्योंकि वह दो द्रव्यों में समानरूप से रहता है । 'सांसिद्धिकस्य' अर्थात् सांसिद्धिद्रवत्व का गुरुत्ववन्नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयः' अर्थात् जिस प्रकार नित्यद्रव्य में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाला गुरुत्व नित्य ही होता है, और अनित्यद्रव्य में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाला गुरुत्व कारणगुणक्रम से उत्पन्न होनेवाला कार्य होता है. एवं आश्रय के विनाश से विनाश को प्राप्त होता है, उसी प्रकार द्रवत्व में भी समझना चाहिए । ( अर्थात् नित्य द्रव्य में रहनेवाला द्रवत्व भी नित्य है, एवं कार्य द्रव्य में रहनेवाले द्रवत्ल की उत्पत्ति कारणगुणक्रम से होती है, एवं विनाश आश्रय के विनाश से होता है ) 1
For Private And Personal
'संघात दर्शनात् सांसिद्धिकद्रवत्वमयुक्तम्' इस सन्दर्भ के द्वारा आक्षेप किया गया है कि हिम, करका प्रभृति जलीय द्रव्यों में 'संघात' अर्थात् काठिन्य देखा जाता है, अतः जल में रहनेवाले द्रवत्व को स्वाभाविक मानना ठीक नहीं है । दिव्येन' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा उक्त आक्षेप का समाधान करते हैं। सभी जलों में स्वाभाविक द्रवत्व को