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प्रकरणम्]
भाषानुवादसहितत्
प्रशस्तपादभाष्यम् कामोऽभिलाषः, रागः सङ्कल्पः, कारुण्यम्, वैराग्यमुपधा भावः इत्येवमादय इच्छामेदाः। मैथुनेच्छा कामः । अभ्यवहारेच्छामिलापः। पुनः पुनर्विषयानुरञ्जनेच्छा रागः। अनासन्नक्रियेच्छा सङ्कल्पः। स्वार्थमनपेक्षा परदुःखप्रहाणेच्छा कारुण्यम् । दोषदर्शनाद्
काम, अभिलाषा, राग, संकल्प, वैराग्य, उपधा एवं भाव प्रभृति इच्छा के ही भेद हैं । ( जैसे कि ) मैथुन की इच्छा ही 'काम' है। भोजन करने की इच्छा ही 'अभिलाषा है । बार बार विषयों को भोगने की इच्छा ही 'राग' है । शीघ्र किसी काम को करने की इच्छा ही 'संकल्प' है । अपने कुछ स्वार्थ के बिना दूसरों के दुःख को छुड़ाने की इच्छा ही 'कारुण्य' है। दोष के ज्ञान से विषय को छोड़ने की इच्छा ही 'वैराग्य' है। दूसरे
न्यायकन्दली सुखसाधने वस्तुनीच्छा उपजायते, तदुत्पत्तौ च तद्विषयसाध्यं सुखमना गतमपि बुद्धिसिद्धत्वानिमितकारणम् । यदाह न्यायवात्तिककार:--"फलस्य प्रयोजकत्वात्" इति । अतिक्रान्ते सुखहेताविच्छोत्पत्तेः स्मृति: कारणम् । प्रयत्नस्मृतिधर्माधर्महेतुः। उपादानेच्छातस्तदनुगुणः प्रयत्नो भवति, स्मरणेच्छातः स्मरणम्, विहितेषु ज्योतिष्टोमादिषु फलेच्छया प्रवृत्तस्य धर्मो जायते। प्रतिषिद्धेषु रागात् प्रवृत्तस्याधमः। कामादयोऽपि सन्ति ते कस्मान्नोक्ताः ? अत आह-- काम इत्यादि।
___ कामादय इच्छाप्रभेदाः, न तत्त्वान्तरमिति यदुक्तं तदेव दर्शयतिभी अना त ही रहता है ( वर्तमान नहीं) फिर भी वह भविष्य सुख भी बुद्धि के द्वारा सिद्ध होने के कारण इच्छा का निमित्तकारण होता है। जैसा कि न्यायवात्तिककार ने 'फलस्य प्रयोजकत्यात्' इत्यादि ग्रन्थ से कहा है कि सुख के कारणोभूत विषयों के नष्ट हो जाने पर भी जो उन विषयों की इच्छा होती है, उस इच्छा के प्रति उन विषयों की स्मृति कारण है। 'प्रयत्नस्मृतिधर्माधमहेतुः' विषयीभूत वस्तु की इच्छा से उसे प्राप्त करने या त्याग करने के उपयुक्त प्रयत्न की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार इच्छा प्रयत्न का भी कारण है)। स्मरण की इच्छा से भी स्मृति होती है। स्वर्गादि के लिए वेदों से निर्दिष्ट ज्योतिष्टोमादि यागों में स्वर्गादि फलों की इच्छा से पो प्रवृत्ति होती हैं, उस इच्छा से धर्म होता है। एर्व राग से जो प्रतिषिद्ध हिंसादि में किसी की प्रवृत्ति होती है, उससे अधर्म की उत्पत्ति होती है, उस अधर्म के प्रति उक्त राग रूप इच्छा कारण है । इस प्रकार इच्छा प्रयत्नादि का हेतु है)।
___काम प्रभृति गुण भी तो है, वे क्यों नहीं कहे गए ? इसी प्रश्न का उत्तर 'कामः' इत्यादि सन्दर्भ से दिया गया है। यह जो कहा है कि "कामादि इच्छा के ही
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