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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमानेऽवयव
प्रशस्तपादभाष्यम् वाक्येन निश्चयापादनार्थ प्रतिज्ञायाः पुनर्वचनं प्रत्याम्नायः, तस्माद द्रव्यमेवेति । न ह्येतस्मिन्नसति परेषामवयवानां समस्तानां अनिश्चित ( सन्दिग्ध ) ही रहता है ( क्योंकि हेतु में पक्षधर्मता और व्याप्ति के निश्चय के बिना) पक्ष में उसके निश्चयात्मक ज्ञान को अपनी आत्मा में उत्पादन का सामर्थ्य बोद्धा पुरुष को नहीं रहता है। हेतु प्रभृति अवयव जब समझानेवाले पुरुष से प्रयुक्त होते हैं, तब समझनेवाले पुरुष में साध्य को पक्ष में निश्चित रूप से समझने का सामर्थ्य उत्पन्न होता है। इस प्रकार की शक्ति से सम्पन्न पुरुष को पक्ष में साध्य को निश्चित रूप से समझाने के लिए प्रयुक्त प्रतिज्ञावाक्य ही 'प्रत्याम्नाय' ( निगमन ) है। जैसे कि ( क्रियावत्त्व हेतु से वायु में द्रव्यत्व की अनुमिति के लिए प्रयुक्त न्यायवाक्यों का) 'तस्मात् वायु द्रव्य ही है' यह वाक्य ( प्रत्याम्नाय है )। इस (प्रत्याम्नाय ) के न रहने पर शेष चार अवयव वाक्य परस्पर
न्यायकन्दली साध्यनिश्चयो न भूतः, तेषां हेतूदाहरणोपनयैरवयवैर्हेतोस्त्रैरूप्ये दर्शिते सञ्जातानुमेयप्रतिपत्तिसामर्थ्यानां प्रत्याम्नाये कृते 'परिसमाप्तेन' परिपूर्णन 'वाक्येन' निश्चयो जायत इत्येतदर्थं प्रतिज्ञायाः पुनर्वचनं प्रत्याम्नायः प्रवर्तते ।
तस्योदाहरणम्-तस्माद् द्रव्यमेवेति । हेत्वादिभिरवयवैरेव साध्यं केवल प्रतिज्ञा वाक्य से साध्य का निश्चय ( सिद्धि ) नहीं होता है। जब हेतु वाक्य के द्वारा हेतु का प्रदर्शन हो जाता है. एवं ( उदाहरण और उपनय के द्वारा) हेतु का (व्याप्ति और पक्षधर्मता रूप ) सामर्थ्य कथित हो जाता है, तब प्रत्थाम्नाय के द्वारा साध्य का निश्चयात्मक ज्ञान उत्पन्न होता है। इस प्रकार प्रत्याम्नाय की सार्थकता स्पष्ट है। यही बात 'प्रतिपाद्यत्वेनोद्दिष्टे' इत्यादि से कही गई है। अभिप्राय यह है कि बोद्धा को पहिले केवल (प्रतिज्ञा ) वचन के द्वारा साध्य का निश्चय नहीं हो पाता, किन्तु हेतु, उदाहरण और उपनय इन तीन अवयवों के द्वारा ( अनुमान के प्रयोजक ) हेतु के (पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व इन) तीनों रूपों का ज्ञान जब बोद्धा पुरुष को हो जाता है, तब उसो पुरुष को अर्थात् कथित रीति से अनुमेय के ज्ञान के सामथ्यं से युक्त हेतु के ज्ञान से युक्त पुरुष को प्रत्याम्नाय वाक्य के प्रयुक्त होने पर 'परिसमाप्त' अर्थात् सम्पूर्ण वाक्य से निश्चयात्मक ज्ञान होता है। इसी निश्चयात्मक ज्ञान के लिए प्रतिज्ञा वाक्य का पुनः प्रयोग रूप प्रत्याम्नाय प्रवृत्त होता है।
'तस्माद् द्रव्यमेव' इस वाक्य के द्वारा प्रत्याम्नाय का उदाहरण दिखलाया गया है। हेतु प्रभृति अवयवों से ही साध्य की सिद्धि हो जाएगी, अतः प्रत्याम्नाय का
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