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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् विशेषदर्शनजमवधारणज्ञानं संशयविरोधी निर्णयः । एतदेव प्रत्यक्षमनुमानं वा। यद् विशेषदर्शनात् संशयविरोध्युत्पद्यते ।
विशेष विषयक ज्ञान से उत्पन्न एवं संशय का विरोधी अवधारण' रूप ज्ञान ही निर्णय' है। प्रत्यक्ष और अनुमिति दोनों निर्णय रूप ही
न्यायकन्दली
प्रमाणेतरसामान्यस्थितेरन्यधियो गतेः।
प्रमाणान्तरसद्भावः प्रतिषेधाच्च कस्यचित् ।। इति । प्रमाणतदभावसामान्यव्यवस्थापनात्, परबुद्धेरधिगमात्, कस्यचिदर्थस्य प्रतिषेधाच्च प्रत्यक्षात् प्रमाणान्तरस्य स्वभावकार्यानुपलब्धिलिङ्गस्यानुमानस्य सद्भाव इति वात्तिकार्थ इति ।
निर्णयं केचित् प्रत्यक्षानुमानाभ्यां प्रमाणान्तरमिच्छन्ति, तान् प्रत्याहविशेषदर्शनजमित्यादि। यत्र विशेषानुपलम्भात संशयः संजातः, तत्र विशेषदर्शनाज्जायमानमवधारणज्ञानं निर्णयः। स च संशयविरोधी, तस्मिन्नुपजायमाने संशयस्योच्छेदात् । यथाह मण्डनो विभ्रमविवेके
निश्चिते न खल स्थाणावर्ध्वत्वेन विशेरते । इति । __ संशेरत इत्यर्थः । यद्यपि सर्वमेव निश्चयात्मकं ज्ञानं निर्णयः, तथापि संशयोत्तरकालभावित्वेन प्रसिद्धिप्राबल्यात् संशयविरोधीत्युक्तम्--स्वोक्तं
प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, अनुमानादि नहीं इस प्रकार प्रत्यक्ष के प्रामाण्य की सत्ता से, एवं अनुमानादि के प्रामाण्य की असत्ता से, दूसरे पुरुष में रहने वाली बुद्धियों को समझने से एवं घटादि किसी भी विषय के प्रतिपेध से यह समझते हैं कि 'प्रत्यक्ष से भिन्न और भी प्रमाण है।
उक्त वात्तिक क' अभिप्राय है कि प्रमाण और प्रमाणाभाव की व्यवस्था से, दूसरे पुरुष को बुद्धि को समझने से एवं किसी वस्तु के प्रतिषेध से समझते हैं कि प्रत्यक्ष से भिन्न कोई दूसरा प्रमाण अर्थात् स्वभावलिङ्गक, कार्यलिङ्गक, एवं अनुपलब्धिलिङ्गक अनुमान प्रमाण भी अवश्य है ।
किसी सम्प्रदाय के लोग प्रत्यक्ष और अनुमान से भिन्न एक 'निर्णय' नाम का अलग प्रमाण मानने की अभिलाषा रखते हैं, उन्हीं लोगों के मत का खण्डन करने के लिए विशेषदर्शनजम्' इत्यादि सन्दर्भ लिखा गया है । जहाँ असाधारण धर्म को अनुपलब्धि से संशय हो चुका है, वहाँ विशेषधर्म ( अपाधारण धर्म ) को उपलब्धि से उत्पन्न होनेवाला अवधारणात्मक ज्ञान हो 'निर्णय' है। यह सशय का प्रतिबन्धक है, क्योंकि इसके उत्पन्न होते हो संशय छूट जाता है। जैसा कि आचार्य मण्डन ने अपने विभ्रमविवेक नाम के ग्रन्थ में कहा है वि -( पुरोवत्ति पदार्थ का) जब 'यह स्थाणु है' इस आकार से निश्चय हो जाता है, तब फिर उसकी उंचाई ( साधार': धर्म के ) ज्ञान से "यह स्थाणु है ? या पुरुष ?" इस आकार का संशय किसी को भी नहीं होता। ( उक्त आधे श्लोक में
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