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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् आम्नायविधातृणामृषीणामतीतानागतवर्तमानेष्वतीन्द्रियेष्वर्थेषु वेदों की रचना करनेवाले महर्षियों को उनके विशेष प्रकार के पुण्य से आगमग्रन्थों में कहे हुए या उनमें न कहे हुए भूत, भविष्य
न्यायकन्दली पदस्मृतिद्वितीयपदानुस्मरणहेतुः। दुःखसाधकस्मरणं द्वषहेतुः। तदित्येव स्मृतेराकारः, तत्र चार्थस्यातीतत्वं पूर्वानुभूतत्वं प्रतीयत इत्यतीतविषया स्मृतिः । अत एव न प्रमाणम्, तस्याः पूर्वानुभवविषयत्वोपदर्शनेनार्थं निश्चिन्वत्या अर्थ परिच्छेदे पूर्वानुभवपारतन्त्र्यात् । अनुमानज्ञानं तूत्पत्तौ परापेक्षम, स्वविषये स्वतन्त्रमेव, स्मृतिरिव । तस्मात् पूर्वानुभवानुसन्धानेनार्थपतीत्यभावात् । यथाहुस्तन्त्रटीकायां सर्वोत्तरबुद्धयो गुरव:----
पूर्वविज्ञानविषयं विज्ञानं स्मृतिरिष्यते।
पूर्वज्ञानाद् विना तस्याः प्रामाण्यं नावगम्यते ।। इति । यथा चेदमाहुः कारिकायाम
तत्र यत पूर्वविज्ञानं तस्य प्रामाण्यमिष्यते ।
तदुपस्थानमात्रेण स्मृतेश्च चरितार्थता ।। इति । है । एक वाक्य में प्रयुक्त एक पद की स्मति से उसी वाक्य में प्रयुक्त दूसरे पद की 'पश्चात्स्मृति' की उत्पत्ति होती है, इस प्रकार स्मृति ‘अनुस्मरण' का भी कारण है । दुःख देनेवाली किसी वस्तु का स्मरण उस वस्तु में 'द्वेष' का भी कारण है। 'वह था' स्मृति का यही आकार होता है। इस आकार से स्मृति के विषय का अतीत होना और पहिले से अनुभूत होना लक्षित होता है, अतः भाष्यकार ने स्मृति को 'अतीतविषया' कहा है। यही कारण है कि स्मृति को प्रमाण नहीं माना जाता, क्योंकि वह पूर्व में अनुभूत विषय को हो पुनः निश्चित करती है, अतः स्मृति अपने विषय को निश्चित करने में अपने कारण पूर्वानुभव के अधो। है। यद्यपि अमिति भी अपनी उत्पत्ति के लिए परामर्शादि दूसरे ज्ञानों के अधीन है। किन्तु साध्य रूप अपने असाधारण विषय के ज्ञापन में उसे किसी दूसरे की अपेक्षा नहीं है (अतः अनुमान उत्पत्ति में परापेक्ष होने पर भी ज्ञप्ति में परापेक्ष नहीं है, अतः वह प्रमाण है ) क्योंकि अनुमिति से साध्य की प्रतीति में स्मृति की तरह किसी (स्वविषयविषयक) पूर्वानुभव की अपेक्षा नहीं है । जैसा कि तन्त्रटीका में लोकोत्तरबुद्धिमान् गुरु ने कहा है कि
_ जिस विज्ञान में पर्वानुभव का विषय ही विषय हो उसी विज्ञान को स्मृति' कहते हैं, उस पहिले ज्ञान के प्रामाण्य के बिना स्मृति प्रमाण नहीं होती। उन्होंने ही (इलोकवातिक में इस प्रसङ्ग में ) कहा है कि 'कारणीभूत पूर्वानुभव में जो प्रामाण्य है, उसी का व्यवहार स्मृति से होता है, स्मृति का इतना ही काम है कि अपने कारणीभूत पूर्व विज्ञान के विषय को उपस्थित कर दे ।
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