________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमाने हेत्वाभास
प्रशस्तपादभाष्यम् क्रियावत्यास्पर्शवत्वयोरिति । नन्वयमसाधारण एवाचाक्षुषत्वप्रत्यक्षत्ववत् संहतयोरन्यतरपक्षासम्भवात् । ततश्चानध्यवसित इति है। जैसे कि मन में मूतत्व के साधक क्रियावत्त्व और अमर्त्तत्व के साधक अस्पर्शवत्त्व ये दोनों ही हेतु विद्यमान हैं, अतः संशय होता है कि मन क्रियाशील होने के कारण मूर्त है या अस्पर्शयुक्त ( द्रव्य ) होने के कारण (आकाशादि की तरह ) अमूर्त है ? मन में उक्त सन्देह का कारण होने से उक्त दोनों ही हेतु सन्दिग्ध नाम के हेत्वाभास हैं । ( अवान्तर उत्तरपक्ष ) जिस प्रकार अवाक्षुषत्व ( चक्षु से गृहीत न होना ) एवं प्रत्यक्षत्व ( इन्द्रिय से गृहीत होना ) इन दोनों में से एक-एक गुण से भिन्न दूसरी जगह पृथक् रूप से रहने पर भी मिलित होकर केवल गुण में ही रहने के
न्यायकन्दली चान्यतरस्य हेतोविशेषोऽवगम्यते येनेकपक्षावधारणं स्यात् । अतः क्रियावत्त्वास्पर्शवत्त्वाभ्यां मनसि संशयो भवति, कि मूर्तं किं वामूर्तमिति । अयमेव च विरुद्धाव्यभिचारिणः प्रकरणसमाद् भेदो यदयं संशयं करोति, प्रकरणसमस्तु सन्दिग्धेऽर्थे प्रयुज्यमानः संशयं न निवर्तयतीति।
नन्वयमसाधारण एव, अचाक्षुषत्व प्रत्यक्षत्ववत् संहतयोरन्यतरपक्षासम्भवादिति। क्रियावत्त्वास्पर्शवत्त्वे प्रत्येकं न तावत् संशयं जनयतः, निर्णयहेतुत्वात् । सन्निपातश्च तयोरयमसाधारण एव, संहतयोस्तयोर्मनोव्यतिरेकेणान्यअवश्य है )। इन दोनों हेतुओं में से किसी एक हेतु में 'विशेष' बल का भी निश्चय नहीं है कि उन दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष का अवधारण हो जाय । अतः कथित क्रियावत्त्व और अस्पर्शवत्त्व इन दोनों हेतुओं से मन में यह संशय उत्पन्न होता है कि 'मन मूर्त है या अमूर्त ? विरुद्धाव्यभिचारी (प्रस्तुत विलक्षण सन्दिग्ध ) हेत्वाभास में प्रकरणसम ( सत्प्रतिपक्ष ) हेत्वाभास से यही अन्तर है कि विरुद्धाव्यभिचारी हेत्वाभास पक्ष में प्रकृत साध्य के संशय का उत्पादन करता है. किन्तु प्रकरणसम उस साध्य में प्रवृत्त होता है जो सन्दिग्ध है, जिससे कि वह पक्ष में साध्य के सन्देह को दूर नहीं कर पाता।
___ 'नन्वयमसाधारण एव, अचाक्षुषत्वप्रत्यक्षत्ववत् संहतयोरन्यतरपक्षासम्भवात्' इस (पूर्वपक्ष भाष्य ) का अभिप्राय है कि यह (विरुद्धाव्यभिचारी या सन्दिग्धविशेष ) असाधारण हेत्वाभास ही है, क्योंकि कथित क्रियावत्त्व और अस्पर्शवत्त्व इन दोनों में कोई एक हेतु संशय को उत्पन्न नहीं कर सकता, क्योंकि प्रत्येकशः वे दोनों निश्चय के ही उत्पादक हैं। दोनों हेतुओं का सम्मिलन (जिससे संशय हो सकता है ) असाधारण ही है, क्योंकि क्रियावत्व और अस्पर्शवत्त्व इन दोनों का सम्मिलन तो केवल मन रूप पक्ष में ही सम्भव है, मन को छोड़कर उन दोनों का सम्मिलन
For Private And Personal