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न्यायकन्दली संचलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमाने निदर्शन
न्यायकन्दली
भासः, कर्मणो मूर्त्यभावात् । यथा परमाणुरित्यनुमेयाव्यावृत्तः, अनुमेयं नित्यत्वं परमाणोरव्यावृत्तम् । यथाकाशमित्युभयव्यावृत्तः नाकाशादमूर्तत्वं नापि नित्यत्वं व्यावृत्तम् । यथा तम इत्याश्रयासिद्धः । परमार्थतस्तु तम एव नास्ति, किमाश्रया साध्यसाधनयोर्व्यावृत्तिः स्यात् । घटवदित्यव्यावृत्तः । यद्यपि घटे साध्यसाधनयोरस्ति व्यावृत्तिः, तथापि यदनित्यं तन्मूर्तमित्येवं न
याव्यावृत्त, (३) उभयाव्यावृत्त, (४) आश्रयासिद्ध, (५) अव्यावृत्त और ( ६ ) विपरीतव्यावृत्त ।
(१) 'नित्यः शब्दः, अमूर्त्तत्वात्' रूप में इस अनुमान के लिए कोई यदि 'यदनित्यं तन्मूर्त्तम्, यथा कर्म' इस प्रकार से कर्म को वैधर्म्य निदर्शन न उपस्थित करे तो वहाँ कर्म 'लिङ्गाव्यावृत्त' नाम का वैधर्म्यनिदर्शनाभास होगा । क्योंकि क्रिया रूप विपक्ष में अमूर्त्तत्व रूप लिङ्ग की अव्यावृत्ति अर्थात् अभाव नहीं है । क्रिया में नित्यत्व रूप साध्य तो नहीं है, किन्तु अमूर्त्तत्व रूप हेतु है ।
(२) 'नित्यः शब्दः, अमूर्त्तत्वात्' इसी अनुमान में यदि कोई यदनित्यं तन्मूत् दृष्टम्, यथा परमाणु:' इस प्रकार से परमाणु को वैधर्म्य निदर्शन के लिए उपस्थित करे तो वह 'अनुमेयाध्यावृत्त निदर्शनाभास' होगा, क्योंकि परमाणु में नित्यत्व रूप अनुमेय अर्थात् साध्य की व्यावृत्ति (अभाव) नहीं है ।
(३) उसी अनुमान में यदि कोई 'यदनित्यं तन्मूर्त्तं दृष्टम्, यथाकाशम्' इस प्रकार से आकाश को वैधयं निदर्शनाभास के लिए उपस्थित करे तो वह 'उभयाव्यावृत्त' निदर्शनाभास होगा, क्योंकि आकाश में नित्यत्वरूप साध्य का अभाव और अमूर्त्तत्व रूप हेतु का अभाव, अर्थात् अनित्यत्व और मूर्त्तत्व इन दोनों में से कोई भी नहीं है, अतः आकाश में साध्यभाव और हेत्वभाव दोनों की ही व्यावृत्ति ( अभाव ) न रहने के कारण प्रकृत में आकाश 'उभयाव्यावृत्त' निदर्शनाभास है ।
(४) उसी अनुमान में 'यथा तम:' इस प्रकार से तम ( अन्धकार को यदि वैधर्म्यदृष्टान्त रूप से उपस्थित किया जाय तो वह 'आश्रयासिद्ध' नाम का निदर्शनाभास होगा। क्योंकि तम नाम की कोई वस्तु ही नहीं है, फिर साध्यव्यावृत्ति ( साध्य का अभाव ) और हेतुव्यावृत्ति (हेतु का अभाव ) इन दोनों का किसमें प्रदर्शन होगा ?
(५) 'नित्यः शब्दः, अमूर्त्तत्वात् इसी अनुमान में वैधर्म्यनिदर्शन को दिखलाने के लिए यदि 'घटवत्' केवल इसी वाक्य का प्रयोग करे ('यदनित्यं तन्मूर्त्तम्' इस अंश का प्रयोग 'घटवत्' इस वाक्य के पहिले न करे ) तो वह 'अव्यावृत्त' नाम का निदर्शनाभास होगा । यद्यपि घट में साध्य की व्यावृत्ति ( अर्थात् अनित्यत्व) और हेतु की व्यावृत्ति ( मूर्त्तत्व) ये दोनों ही हैं, फिर भी 'यदनित्यं तन्मूर्त्तम्' ( जो अनित्य होता है वह अवश्य हो मूर्त होता है) इस अंश का प्रयोग न करने के कारण इस प्रसङ्ग में विरुद्ध मत
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