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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमाने हेत्वाभास
प्रशस्तपादभाष्यम्
स्मिश्च द्वयोर्हत्वोर्यथोक्तलक्षणयोर्विरुद्धयोः सन्निपाते सति संशयदर्शनादयमन्यः सन्दिग्ध इति केचित् । यथा - मूर्तस्वामूर्तत्वं प्रति मनसः है । जैसे कि किसी वस्तु में केवल विषाण के देखने से गो के अनुमान का विषाण हेतु ( सन्दिग्ध नाम का हेत्वाभास है ), क्योंकि विषाण रूप हेतु दर्शन के विषय किसी पक्षीभूत वस्तु में एवं उसके समानजातीयों में एवं विजातीय महिषादि में साधारण रूप से रहने के कारण पक्षीभूत वस्तु में यह 'गो' है या 'महिष' इस सन्देह का उत्पादक है । ( पूर्वपक्ष ) कोई कहते हैं कि उक्त रीति से ही यदि समानबल के एवं परस्पर विरुद्ध दो वस्तुओं के साधक दो हेतुओं का समावेश जहाँ एक धर्मी में होता है वहाँ वह हेतु उस धर्मी में उक्त परस्पर विरुद्ध दो वस्तुओं के सन्देह का हेतु होने के कारण एक और ही प्रकार का सन्दिग्ध नाम का हेत्वाभास
न्यायकन्दली
व्यापको विपक्षैकदेशवृत्तिरनैकान्तिकः । सपक्षविपक्षयोर्व्यापको नित्यः शब्दः, प्रमेयत्वादिति । सपक्षविपक्षैकदेशवृत्तिः, नित्यमाकाशममूर्तत्वादिति । सपक्षेकदेशवृत्तिविपक्षव्यापको द्रव्यं शब्दो निरवयवत्वादिति । समानासमानजातीययोः साधारण इति यत् साधारणपद तस्य विवरणं सन्नवेति ।
गो से भिन्न महिष एवं अश्त्र प्रभृति जो सभी उसके विपक्ष हैं, उनमें से महिषादि में ही विषाण रूप हेतु है, अश्वादि में नहीं ) । (२) सभी सपक्षों और सभी विपक्षों में व्यापक रूप से रहनेवाले सन्दिग्ध हेत्वाभास का उदाहरण 'नित्यः शब्दः प्रमेयत्वात्' इस अनुमान का 'प्रमेयत्व' हेतु है ( क्योंकि प्रमेयत्व सभी वस्तुओं में रहने के कारण नित्य रूप सभी सपक्षों में और अनित्य रूप सभी विपक्षों में विद्यमान है ) । (३) कुछ ही विपक्षों में एवं कुछ ही सपक्षों में रहनेवाले सन्दिग्ध हेत्वाभास का दृष्टान्त है 'नित्यमाकाशममूर्त्तत्वात्' इस अनुमान का 'अमूर्त्तत्व' हेतु, ( क्योंकि आत्मा प्रभृति कुछ ही सपक्षों में अमूर्त्तत्व है, एवं अनित्य पृथिवी प्रभृति कुछ ही सपक्षों में ही अमृत्तत्व है ) ( ४ ) सभी विपक्षों में एवं कुछ ही सपक्षों में रहनेवाले सन्दिग्ध हेत्वाभास का उदाहरण है 'द्रव्यं शब्दो निरवयवत्वात्' इस अनुमान का 'निरवयवत्व' हेतु क्योंकि द्रव्यत्व शून्य सभी वस्तुओं में निरवयवत्व है, एवं सपक्षीभूत कुछ हो द्रव्यों में निरवयवत्व है ।" ' समानासमानजातीययोः साधारण:' इस वाक्य में जो 'साधारण' पद है, उसी की व्याख्या 'सन्नेव' इस वाक्य के द्वारा की गई है ।
१. अर्थात् यह ' सन्दिग्ध' हेत्वाभास चार प्रकार का है - ( १ ) सपक्षव्यापक और विपक्षैकदेशवृत्ति ( २ ) सपक्ष और विपक्ष दोनों का व्यापक, (३) सपक्षैकदेशवृत्ति एवं विपक्षकदेशवृति, (४) विपक्षव्यापक और सपक्षैकदेशवृत्ति । मुद्रित न्यायकन्दली
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