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प्रकरणम्
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् ___यस्तु सन्ननुमेये तत्समानासमानजातीययोः साधारणः सन्नेव स सन्देहजनकत्वात् सन्दिग्धः, यथा-यस्माद् विषाणी तस्माद् गौरिति । एकनहीं है, एवं अश्व के सजातीय रासभादि में भी वह नहीं है, किन्तु अश्व के विपरीत महिषादि में विषाण हेतु है, अत: गो में अश्व के विपरीत अश्वभेद का ही वह साधक है।
( ३ ) जो हेतु अनुमेय में ( साध्य में ) एवं उसके सजातीय और विरुद्धजातीय दोनों प्रकार के वस्तुओं में समान रूप से सम्बद्ध रहे, वह ( पक्ष में साध्य के ) सन्देह का कारण होने से 'सन्दिग्ध' नाम का हेत्वाभास
न्यायकन्दली विरुद्ध मित्युच्यते । इदं विपक्षकदेशवृत्तेविरुद्धस्योदाहरणम्. विषाणित्वस्य सर्वत्रानश्वे स्तम्भादावसम्भवात् । समस्तविपक्षव्यापकस्य विरुद्धस्योदाहरणम्नित्यः शब्दः कृतकत्वादिति द्रष्टव्यम् ।
यस्तु सन्ननुमेये मिणि, तत्समानजातीययोः सपक्षविपक्षयोः, साधारणः स सन्देहजनकत्वात् सन्दिग्धः। यथा यस्माद् विषाणी, तस्माद् गौरिति । यदायं पिण्डो गौविषाणित्वादिति साध्यते, तदा विषाणित्वं गवि महिषे च दर्शनात् सन्देहमापादयन् सन्दिग्धो हेत्वाभासः स्यात् । अयं सपक्षरहनेवाले विरुद्ध ( हेत्वाभास ) का है। ( सभी विपक्षो में रहने वाले विरुद्ध का नहीं) क्योंकि प्रकृत अनुमान के विपक्षीभूत स्तम्भादि द्रव्यों में विषाणित्व हेतु नहीं है । सभी विपक्षों में व्यापक रूप से रहनेवाले विरुद्ध हेत्वाभास का उदाहरण 'नित्यः शब्दः कृतकत्वात्' इस अनुमान में प्रयुक्त 'कृतकत्व' को समझना चाहिए (क्योंकि नित्यत्व रूप साध्य के अनाश्रयीभूत सभी वस्तुओं में कृत कत्व हेतु अवश्य है )।
'यस्तु सन्ननुमेये' ( इस वाक्म में प्रयुक्त 'अनुमेये' शब्द का अर्थ है ) 'धर्मी में' अर्थात् जो हेतु पक्ष में रहते हुए 'तत्समानासमानजातीययोः' अर्थात् सपक्ष और विपक्ष दोनो में भी समान रूप से रहे, वह हेतु 'सन्देहजनक' होने के कारण 'सन्दिग्ध' नाम का हेत्वाभास है। यस्माद् विषाणी तस्माद् गौः' अर्थात् जिस समय वन में छिपे हुए कथित पिण्ड में ही केवल विषाण के देखने से कोई इस प्रकार के अनुमान का प्रयोग करे कि 'यह गो है क्योंकि इसे सींग है' उस समय यह विषाण रूप हेतु गो रूप पक्ष और महिष रूप विपक्ष दोनों में समान रूप से रहने के कारण इस सन्देह को उत्पन्न करता है कि 'यह गो है या महिष'। इस सन्देह को उत्पन्न करने के कारण ही उक्त विषाण हेतु सन्दिग्ध' नाम का हेत्वाभास होता है। (भाष्योक्त सन्दिग्ध हेत्वाभास का यह उदाहरण ) (१) सपक्ष का व्यापक और कुछ ही विपक्षों में रहनेवाले 'सन्दिग्ध' नाम के हेत्वाभास का है, (क्योंकि विषाण रूप हेतु विषाणित्व रूप से निश्चित सभी गो रूप सपक्ष में है, किन्तु
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