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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली नास्ति, आरोपितस्य कायॆमात्रस्य प्रतीतेः, अतस्तमो द्रव्यं पार्थिवम्, कृष्णरूप. वत्त्वादित्यनुमेयासिद्धमाश्रयासिद्धम् । अनुमेयमसिद्धं यस्येत्यसिद्धानुमेयमिति प्राप्तावाहिताग्न्यादित्वान्निष्ठायाः पूर्वनिपातः।
यथा हेतुरन्यतरासिद्ध उभयासिद्धो वा भवति, एवमाश्रयासिद्धिरप्युभयथा । यथा च हेतोर्वादिप्रतिवादिनो: प्रत्येकं समुदितयोर्वा अज्ञानात् सन्देहाद विपर्ययाद् वा असिद्धो भवति, तथाश्रयोऽपि । यथा च हेतुः कश्चिद् वादिनोऽज्ञानादसन्दिग्धः प्रतिवादिनः सन्दिग्धासिद्ध इति। यद्वा वादिनोsज्ञानासिद्धः, यदि वा प्रतिवादिनो विपर्ययासिद्धः। यद्वा वादिनः सन्देहासिद्धः प्रतिवादिनोऽज्ञानासिद्धः । यद्वा विपर्ययासिद्धो भवति वादिनः, उक्त स्थल में प्रसिद्ध नहीं है अतः ) 'पार्थिवं तमः कृष्णरूपवत्त्वात्' इस अनुमान का 'अनुमेय' अर्थात् आश्रय सिद्ध न होने के कारण इस अनुमान का ( कृष्णरूपवत्त्व ) हेतु अनुमेयासिद्ध या आश्रयासिद्ध हेत्वाभास है । यद्यपि 'अनुमेयमसिद्धं यस्य' इस व्युत्पत्ति के द्वारा निष्पन्न होने के कारण अनुमेयासिद्ध' न होकर 'असिद्धानुमेय' शब्द का प्रयोग उचित है, तथापि आहिताग्न्यादि गण में पठित होने के कारण 'अनुमेय' शब्द का पूर्वप्रयोग मान कर ( असिद्धानुमेय न लिखकर ) अनुमेया सिद्ध' शब्द लिखा गया है।
___ जैसे कि हेतु वादी और प्रतिवादी दोनों से असिद्ध होने के कारण 'उभयासिद्ध' और उन दोनों में से केवल एक से असिद्ध होने के कारण 'अन्यतरासिद्ध' कहलाता है, अर्थात् हेतु की सिद्धि दो प्रकार को होने से 'असिद्ध' हेत्वाभास भी दो प्रकार का होता है। उसी प्रकार अनुमेय रूप आभय जहाँ वादी और प्रतिवादी दोनों के द्वारा असिद्ध होगा, वहाँ अनुमेयासिद्ध या आश्रयासिद्ध भी उभयासिद्ध रूप होगा । एवं जहाँ अनुमेय केवल वादी या प्रतिवादी किसी एक ही के द्वारा असिद्ध होगा, वहाँ अनुमेयासिद्ध भी अन्यतरासिद्ध नाम का आश्रयासिद्ध हेत्वाभास होगा। कहने का अभिप्राय है कि वादी और प्रतिवादी दोनों में से किसी एक के हेतुविषयक अज्ञान, या हेतुविषयक सन्देह या हेतुविषयक विपर्यय के कारण 'असिद्ध' नाम का हेत्वाभास होता है, उसी प्रकार आश्रयासिद्ध' नाम के हेत्वाभान के प्रसङ्ग में भी समझना चाहिए कि साध्यविशिष्ट पक्ष रूप आश्रय या अनुमेय विषयक वादी और प्रतिवादी दोनों के अज्ञान या सन्देह या विपर्यय एवं वादी और प्रतिवादी दोनों में से एक के उक्त अनुमेय या आश्रय के अज्ञान या सन्देह या विपर्यय के कारण ही आश्रयासिद्ध या अनुमेयासिद्ध नाम का हेत्वाभास भी होता है। ( अन्यतरासिद्ध के प्रसङ्ग में यह विशेष ) योजना या अतिदेश आश्रयासिद्ध के प्रसङ्ग में भी समझना चाहिए। जैसे कि कोई हेतु वादी के द्वारा अज्ञात होने के कारण असन्दिग्ध होने पर भी प्रतिवादी के लिए सन्दिग्धासिद्ध होता है, वैसे ही आश्रया सिद्ध के प्रसङ्ग में भी समझना चाहिए। अथवा कोई हेतु वादी के लिए सन्दिग्धासिद्ध होने पर भी प्रतिवादी के लिए विपर्ययासिद्ध होता है। अथवा जिस प्रकार कोई हेतु वादी के लिए सन्दिग्धासिद्ध है, किन्तु प्रतिवादी के लिए अज्ञानासिद्ध होता है, वैसे ही आश्रयासिद्ध
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