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प्रकरणम् ]
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भावानुवादसहितम्
न्यायकन्दली
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६०१
यद् द्रव्यं तत् क्रियावद् दृष्टमिति च लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाननुगतविपरीतानुगताः साधर्म्यनिदर्शनाभासाः । नित्यः शब्दोऽमूर्तत्वात् यथा परमाणुरिति लिङ्गासिद्धो निदर्शनाभासः परमाणोरमूर्तत्वाभावात् । यथा कर्मेत्यनुमेयासिद्धः, कर्मणो नित्यत्वाभावात् । यथा स्थालीत्युभया सिद्ध:, न स्थाल्यां साध्यं नित्यत्वमस्ति, नापि साधनममूर्तत्वम् । यथा तम इत्याश्रयासिद्धः । परमार्थतस्तमो नाम न किञ्चिदस्ति, क्व साध्यसाधनयोर्व्याप्तिः कथ्यते ? अम्बरवदित्यननुगतोऽयं निदर्शनाभासः । यद्यप्यम्बरे नित्यत्वममूर्त्तत्वमुभयमप्यस्ति, तथापि यदमूर्तं तन्नित्मेवं न व्रते, किन्त्वम्बरवदित्येतावन्मात्रमाह । न चेतस्माद् वचनादप्रतिपन्नसाध्यसाधनयोरम्बरे सद्भावप्रतीतिरस्ति, तस्मादननुके मूर्त होने के कारण उसमें अमूर्त्तत्व नाम का हेतु ही सिद्ध नहीं है । ( निदर्शन में साध्य की तरह हेतु का निश्चित रहना भी आवश्यक है ) ।
(२) नित्यः शब्दोऽमूर्त्तत्वात्' इसी अनुमान में अगर कोई 'यदमूर्त्त दृष्टं तन्नित्यम्, यथा कर्म' इस निदर्शन वाक्य का प्रयोग करे तो वह अनुमेयासिद्ध' निदर्शनाभास होगा, क्योंकि क्रिया में नित्यत्व रूप अनुमेय अर्थात् साध्य ही सिद्ध नहीं है ।
(३) उसी अनुमान में 'यदमूर्त्तं दृष्टं तन्नित्यम्, यथा स्थाली' इस प्रकार के निन्दर्शनवाक्य का अगर कोई प्रयोग करे तो वह 'उभयासिद्ध' नाम का निदर्शनाभास होगा, क्योंकि स्थाली (बटलोही ) में नित्यत्व रूप अनुमेय और अमूर्त्तत्व रूप लिङ्ग दोनों हो सिद्ध नहीं हैं ।
(४) उसी अनुमान में कोई अगर 'यदमूर्त्तं दृष्टं तन्नित्यम्, यथा तम:' इस प्रकार से निदर्शन वाक्य का प्रयोग करे, तो वह आश्रयासिद्ध' नाम का निदर्शनाभास होगा, क्योंकि तम नाम का कोई (भाव) पदार्थ वस्तुत: है ही नहीं, साध्य और हेतु की व्याप्ति का प्रदर्शन कहाँ होगा ? (क्योंकि निदर्शन का यही प्रयोजन है कि वहाँ साध्य और हेतु की व्याप्ति निश्चित रहे, जिससे कि प्रकृत पक्ष में साध्य की सिद्धि के लिए उसका प्रयोग किया जा सके। )
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( ५ ) ( शब्दो नित्यः, अमूर्त्तत्वात्' इसी स्थल में अगर उदाहरण को दिखाने के लिए 'अम्बरवत्' केवल इतने ही अंश का कोई प्रयोग करे 'यदमूर्तं तन्नित्यम्' इस अंश का प्रयोग न करे तो वह 'अननुगत' नाम का निदर्शनाभास होगा । यद्यपि आकाश में नित्यत्व और अमूर्त्तत्व ये दोनों ही हैं, फिर भी 'यदमूर्त्तं तन्नित्यम्' इस अंश का प्रयोग नहीं किया गया है, किन्तु केवल 'अम्बरवत्' इतना ही कहा गया है, केवल इसी त्रुटि से यह 'अननुगत' नाम का हेत्वाभास होगा। क्योंकि इस वाक्य के बिना पहिले से अज्ञात साध्य और हेतु इन दोनों की सत्ता का ज्ञान आकाश में नहीं हो सकेगा, अतः यह ( साध्य और हेतु आकाश रूप अधिकरण में अनुगत रूप से ज्ञापक न होने के कारण ) 'अननुगत' नाम का निदर्शना भास है ।
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