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५५४ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्य
नेऽभावान्तर्भावन्यायकन्दली प्रतियोगिनि घटादौ जिघृक्षिते सत्युपलब्धिघटाद्यभावव्यवहारं प्रवर्तयतीति।
अत्रापि ब्रूमः-घटादेरभावाद् भूतलं च व्यतिरेच्यकाकिशब्दस्यार्थः कः समर्थितो भवद्भिर्यो हि नास्तीति प्रतिषेधधिय आलम्बनम् ? नहि विषयवैलक्षण्यमन्तरेण विलक्षणाया बुद्धरस्त्युदयः, नापि व्यवहारभेदस्य संभवः । स्वाभाविकं यदेकत्वं भावस्य तदेवैकाकित्वमिति चेत् ? किमेकत्वं प्रतियोगिरहितत्वम् ? एकत्वसंख्या वा ? एकत्वसंख्या तावद् यावदाश्रयभाविनी भावस्य सद्वितीयावस्थायामप्यनुवर्तते। अथ प्रतियोगिरहितत्वं स्वाभाविकमेकत्वमुच्यते, सिद्धं प्रमेयान्तरम्।
नन्वभाववादिनोऽपि भूतलग्रहणमभावप्रतीतिकारणम्, अप्रतीते भूतले तत्राभावप्रतीतेरयोगात् । तत्र न तावत् कण्टकादिसहितभूतलोपलम्भात् कण्टको घटादि के ग्रहण की इच्छा से जब केवल भूतल को उपलब्धि होती है ( अर्थात् घटयुक्त भूतल की उपलब्धि नहीं होती है) तब ( भूतल की ) वही उपलब्धि भूतल में घटाभाव से व्यवहार को उत्पन्न करती है ।
(उ०) इस प्रसङ्ग में भी हम लोगों का कहना है कि भूतल शब्द के साथ प्रयुक्त 'एकाको' शब्द का भूतल और घटाभाव को छोड़कर और कौन सा अर्थ आप लोग मानते हैं, जिसे आप 'भूतले घटो नास्ति' इस प्रतिषेधबुद्धि का विषय कहते हैं ? विषयों की विलक्षणता के बिना बुद्धियों की विलक्षणता सम्भव नहीं है । एवं बुद्धियों की विभिन्नता के बिना ( शब्द प्रयोग रूप ) विभिन्न व्यवहार भी सम्भव नहीं हैं। (प्र०) ( भूतलादि आश्रय रूप) भावों में जो स्वाभाविक 'एकत्व' है वही उसका एकाकित्व (या एकाकी अवस्था) है। (उ०) यह एकत्व (भूतल में रहनेवाले घटाभाव के ) प्रतियोगी का ( भूतल में ) न रहना ही है ? या उसमें रहने वाली एकत्व संख्या रूप है ? यदि एकत्व संख्या रूप मानें तो वह एकाकित्व भूतल रूप आश्रय जब तक रहेगा तब तक-घट की सत्ता के समय भी-भूतल में रहेगा ही ( अर्थात् भूतल में घट रहने की दशा में भी घटाभाव की प्रतीति की आपत्ति होगी )। यदि उस स्वाभाविक एकत्व को भूतलादि में घटादि प्रतियोगियों का न रहना ही मानें, तो फिर अभाव रूप अलग स्वतन्त्र पदार्थ स्वीकृत ही हो गया।
(प्र.) जो सम्प्रदाय अभाव को स्वतन्त्र पदार्थ मानते हैं, उनके मत से भी जब तक भूतल की प्रतीति नहीं होती, तब तक भूतल में अभाव की प्रतीति नहीं होती है। अतः उनके मत से भी भूतल की प्रतीति भूतल में अभाव प्रतीति का कारण है ही। किन्तु कण्टक सहित भूतल के ग्रहण से भूनल में 'कण्टको नास्ति' इस अभाव की प्रतीति नहीं होती है । यदि कण्टकादि के अभाव से युक्त भूतल को
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