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म्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेऽनुमानेऽभावान्तर्भाव
न्यायकन्दली स च चतुर्दूहः-प्रागभावः, प्रध्वंसाभावः, इतरेतराभावः, अत्यन्ताभावश्चेति।
प्रागुत्पत्तेः कारणेषु कार्यस्याभावः प्रागभावः, तत्र प्राक् कार्योत्पत्तेः पूर्वमभावो विशेषस्य प्रागभावः स चानादिरप्यनित्यः, कार्यात्पादेन तस्य विनाशात्, अविनाशे च कार्यस्योत्पत्त्यभावात् । कः प्रागभावस्य विनाशः ? वस्तूत्पाद एव । निवृत्ते वस्तुनि प्रागभावोपलब्धिप्रसङ्ग इति चेत् ? वस्तुवद् वस्त्ववयवानामप्यारब्धकार्याणां प्रागभावविनाशलक्षणत्वात्।
उत्पन्नस्य स्वरूपप्रच्युतिः प्रध्वंसाभावः। स चोत्पत्तिमानप्यविनाशी, भावस्य पुनरनुपलम्भात् । प्रागभूतस्य पश्चाद्भाव उत्पादः, प्रध्वंसस्य कः
(१) प्रागभाव, (२) प्रध्वंसाभाव (३) इतरेतराभाव (अन्योन्याभाव या भेद ) और (४) अत्यन्ताभाव, अभाव के ये चार भेद हैं ।
(१) उत्पत्ति से पहिले ( समवाय ) कारणों में कार्य का जो अभाव रहता है वही प्रागभाव है (प्रागभाव शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है कि ) 'प्राक्' अर्थात् कार्य को उत्पत्ति से पहिले 'अभा' अर्थात् कार्य रूप 'विशेष' का अभाव ही 'प्रागभाव' है। यह अनादि होने पर भी बिनाशशील है, यदि प्रागभाव को अविनाशी मानें तो कार्य की उत्पत्ति ही न हो सकेगी। अतः (प्रतियोगिभूत ) कार्य की उत्पत्ति से उसका विनाश मानना आवश्यक है । (प्र०) प्रागभाव का विनाश कौन सी वस्तु है ? (उ.) प्रतियोगिभूत वस्तु की उत्पत्ति ही उसके प्रागभाव का विनाश है। (प्र०) तो फिर उस वस्तु के विनष्ट हो जाने पर उस वस्तु के पागभाव की फिर से उपलब्धि होनी चाहिए ? (उ०) (प्रागभाव के विनाश को प्रतियोगी का उत्पत्ति स्वरूप मानने पर भी यह आपत्ति ) नहीं है क्योंकि प्रागभाव का विनाश जिस प्रकार प्रागभाव के प्रतियोगी रूप वस्तु का उत्पत्ति रूप है, उसी प्रकार उस वस्तु के कारणीभूत उन अवयवों के स्वरूप भी हैं, जिन अवयवों से कार्य की उत्पत्ति हो चुकी है।
(२) उत्पन्न हुए कार्य का जपने स्वरूप से हटना ही ( उसका ) 'प्रध्वंसाभाव' है । यह अभाव उत्पत्तिशील होने पर भी विनाशशील नहीं है, क्योंकि विनष्ट हुए भाव व्यक्ति की फिर कभी उपलब्धि नहीं होती है। (प्र.) पहिले से जिसका प्रागभाव रहता है, बाद में उसकी सत्ता ही उस वस्तु की उत्पत्ति कहलाती है, किन्तु प्रध्वंस का प्रागभाव कौन सी वस्तु है ? ( उ०) 'प्रध्वंस के प्रतियोगिभूत वस्तु की सत्ता ही
१. अर्थात जिसकी उत्पत्ति होगी, उसका यदि प्रागभाव मानना आवश्यक हो तो प्रध्वंस का भी प्रागभाव मानना आवश्यक होगा, क्योंकि वह भी उत्पत्तिशील है । अतः प्रश्न उठता है कि प्रध्वंस का प्रागभाव क्या है ?
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