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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितत्
न्यायकन्दली
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५३१
प्रतिपादनादुपमानं यथा गौर्गवयस्तथेति वाक्यमाप्तवचनमेव, वक्तृप्रामाण्यादेव तथा प्रतीतेः । आप्तवचनं चानुमानम् । तस्मादुपमानमप्यनुमानाव्यतिरिक्तमित्यभिप्रायः 1
ये तावत् पूर्वमीमांसका वनेचरवचनमेवोपमानमाहु:, तेषामिदमनुमानमेव ।
येsपि शबरस्वामिशिष्या अनुभूतस्य गोपिण्डस्य वने गवयदर्शनात् स्मृत्यारूढायां गदि मदीया गौरनेन सदृशी' इति सारूप्यज्ञानमुपमानमाचक्षते, तदपि स्मरणमेव । सादृश्यं हि सामान्यवत् प्रत्येकं व्यक्तिसमाप्तं न संयोग. वदुभयत्र व्यासज्य वर्तते, गोपिण्डस्यादर्शनेऽपि वने गवयव्यक्तौ गौसदृशोऽयमिति प्रतीत्युत्पादात् । यथोक्तं मीमांसागुरुभिः
सामान्यवच्च सादृश्यमेकैकत्र समाप्यते । प्रतियोगिन्यदृष्टेऽपि यस्मात् तदुपलभ्यते ॥ इति ।
लिए यथा गौस्तथा गवय: ( अर्थात गो को जिस प्रकार देख रहे हो गवय भी उसी प्रकार का होता है ) प्रयुक्त यह वाक्य आप्तवचन' अर्थात् शब्द प्रमाण ही है, क्योंकि यहाँ भी वचनों के प्रामाण्य से ही अर्थ की प्रतीति होती है । आप्तवचन अनुमान से भिन्न कोई प्रमाण नहीं है। अतः उपमान भी अनुमान के ही अन्तर्गत है, यही उक्त भाष्य सन्दर्भ का अभिप्राय है । प्राचीन मीसांसकों ने वनवासी के उक्त आप्तपुरुष के वचन को ही उपमान प्रमाण माना है, उनका यह उपमान प्रमाण भी अनुमान में हो अन्तर्भूत हो जाता है ।
अनुयायी शिष्यगण यह कहते
शबरस्वामी ( मीमांसासूत्र के भाष्य कर्ता ) के हैं कि जिस पुरुष ने गाय के शरीर को देखा है, वन में जाने पर वही जब गवय को देखता है तब उसे पहिले देखे हुए गो का स्मरण हो आता है । तब स्मरण किये हुए उस गो में यह बुद्धि उत्पन्न होती है कि 'हमारी गाय इस गवय के समान है । यह साक्ष्य ज्ञान ही उपमान प्रमाण है । इस प्रकार का उपमान प्रमाण रूप ज्ञान अनुमान के अन्तर्गत न आने पर भी स्मरण रूप हो सकता है । क्योंकि जिस प्रकार सामान्य ( जाति ) की अधिकरणता उसके प्रत्येक अधिकरण में अलग अलग होती है, उसी प्रकार सादृश्य की अधिकरणता भी उसके अनुयोगी और प्रतियोगी दोनों में अलग अलग है । जिस प्रकार संयोग के अनुयोगी और प्रतियोगी दोनों में उसकी एक ही अधिकरणता रहती है उस प्रकार सादृश्य की एक ही अधिकरणता उसके अनुयोगी और प्रतियोगी दोनों में नहीं है, किन्तु अलग अलग है । अतः गवय को देखने के समय गो का प्रत्यक्ष न रहने पर भी वन में गवय व्यक्ति रूप सादृश्य का ज्ञान उस समय अप्रत्यक्ष गो मे भी हो सकता है ।
For Private And Personal
जैसा कि मीमांसा के आचार्यों ने कहा है कि—चूँकि सादृश्य को उपलब्धि उसके ( एक आश्रय ) प्रतियोगी के न देखने पर भी होती है, अतः सामान्य को तरह उसकी आश्रयता प्रत्येक आश्रय में अलग अलग है ।