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५४७
प्रकरणम्)
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली प्रतियोगिनि स्मृत्यारूढऽभावग्रहणाय प्रत्यक्षादिप्रमाणपञ्चकव्यावृत्तिरेव प्रमाणम् ।
एकत्र चाभावस्याभावपरिच्छेद्यत्वे सिद्धेऽन्यत्रापि तेनैव सेत्स्यतीति सिद्धमभावस्य प्रमाणान्तरत्वम् ।
अत्रोच्यते-देशान्तरं गतः केनचित् पृष्टो देवकुले देवदत्तस्येदानीन्तनानुपलम्भेनेदानीन्तनाभावं प्रत्येति ‘इदानीं नास्ति' इति ? किं वा प्राक्तनानुपलम्भेन प्राक्तनाभावं देवकुलग्रहणसमये नासीदिति ? इदानीन्तनानुपलब्धिस्तावद् योग्यानुपलब्धिर्न भवति, देशव्यवधानात् । सम्प्रत्यभावो देवदत्तस्य सन्दिग्धः, आगमनस्यापि सम्भवात् । प्राक्तनाभावपरिच्छेदयोग्या तु प्राक्तनानुपलब्धिर्नेदानीमनुवर्तते, अवस्थान्तरप्राप्तेः। न चाविद्यमाना प्रतीतिकारणं भवितुमर्हति ।
न रहने पर भी प्रश्न कर्ता के पूछने पर देवदत्त की स्मृति हो जाती है। स्मृति के द्वारा उपस्थित देवदत्त के अनुभावक प्रत्यक्षादि पाँचों प्रमाणों में से कोई भी वहाँ उपस्थित नहीं है, अत: देवदत्त के ग्राहक प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाणों का न रहना या व्यावृत्ति रूप अभाव प्रमाण से ही वहाँ देवदत्त के अभाव का बोध होता है।
___ इस प्रकार एक स्थान में उक्त अभाव प्रमाण को अभाव का ज्ञापक मान लेने पर अन्य सभी स्थानों में अभाव की ज्ञापकता उसमें सिद्ध हो जाती है।
इस प्रसङ्ग में (अभाव को स्वतन्त्र प्रमाण न माननेवाले) हम लोगों का कहना है कि दूसरे देश में जाने पर किसी पुरुष को किसी अन्य पुरुष के द्वारा पूछे जाने पर देवकुल में इस (पूछने के) समय को जो देवदत्त की अनुपलब्धि है, उस अनुपलब्धि के द्वारा (१) देवदत्त का एतत्कालिक जो अभाव है, उसे पूछने वाले को इस प्रकार समझाया जाता है कि 'अभी देव कुल में देवदत्त नहीं है । (२) अथवा जिस समय वह पुरुष देवकुल में था, उस समय की जो देवकुल में देवदत्त की अनुपलब्धि थी, उस अनुपलब्धि के द्वारा देवदत्त के तत्कालिक अभाव को ही इस प्रकार समझाते हैं कि 'उस समय देवकूल में देवदत्त नहीं थे। इनमें इस समय की जो देवकुल में देवदत्त को अनुपलब्धि है. वह प्रत्यक्ष योग्य वस्तु की उपलब्धि ही नहीं है, क्योंकि इस समय बोद्धा पुरुष के देश और देवकुल इन दोनों में बहुत बड़ा व्यवधान है ( अतः देवदत्त उस देश में रहनेवाले पुरुष के द्वारा ज्ञात होने योग्य नहीं है), अतः यह योग्यानुपलब्धि न होने के कारण देवदत्त के अभाव का ग्राहक नहीं हो सकती। 'इस समय देवकुल में देवदत्त नहीं हैं। यह भी सन्दिग्ध ही है, क्योंकि बीच में वह आ भी सकते हैं। पूर्वकाल में रहनेवाली अनुपलब्धि जो-पूर्वकालिक अभाव को ही समझा सकती है-उसका अभी रहना सम्भव नहीं है, क्योंकि स्थिति बदल गई है । अविद्यमान अनुपलब्धि अभावोपलब्धि का कारण नहीं हो सकती।
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