________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
प्रकरणम् ]
www.kobatirth.org
भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
५५१
अय
-
मतम् — एकज्ञानसंसर्गिणोरेकोपलम्भेऽपरस्यानुपलम्भोऽभावसाधनं न सर्वः । येन हि ज्ञानेन प्रदेशो गृह्यते तेनैव तत्संयोगी घटोsपि गृह्यते, यैव प्रदेशग्रहणे सामग्री सैव घटस्यापि सामग्री । यदि प्रदेशे घटोऽभविष्यत् सोऽपि प्रदेशे ज्ञायमाने विज्ञास्येत तत्तुल्यसामग्रीकत्वात् । न ज्ञायते च तस्मान्नास्त्येव तदनुपलम्भस्य प्रकारान्तरेणासम्भवादिति । यद्येवमस्माकमप्येकज्ञानसंसगणोरेकस्म रणेऽपरस्यास्मरणमभावसाधनम् । यैव देवकुलग्रहणसामग्री सा देवदत्तस्यापि तत्संयुक्तस्य ग्रहणसामग्री, या च देवकुलस्य स्मरणसामग्री सा दवदत्तस्यापि स्मृतिसामग्री, तदेकज्ञानसंसगित्वाद् यदि देवकुलग्रहणकाले देवदत्तोऽभविष्यत् सोऽपि देवकुले स्मर्यमाणे अस्मरिष्यत् तत्तुल्यसामग्रीत्वात् । न च
उसके स्मरण के कारणों में कुछ त्रुटि रहती है । ऐसी स्थिति में भूतल के स्मरण के बाद घट का स्मरण न होने से भूतल में घट के न रहने की सिद्धि किस प्रकार होगी ।
यदि यह कहें कि ( प्र० ) सभी अनुपलब्धियाँ अभाव की साधिका नहीं है, किन्तु एक ज्ञान में विषय होनेवाले दो विषयों में से एक की अनुपलब्धि ही दूसरे के अभाव की साधिका है । अत: जिस ज्ञान के द्वारा भूतल रूप प्रदेश का ग्रहण होता है, उसी ज्ञान के द्वारा भूतल में संयुक्त घट का भी ग्रहण होता है । जिन कारणों के समूह से प्रदेश का ज्ञान होता है, उसी कारण समूह से भूतल में संयोग सम्बन्ध से रहनेवाले घट का भी ज्ञान होता है । अतः भूतल में यदि घट रहता तो भूतल के दीखने पर वह भी दीख पड़ता ही, क्योंकि भूतल और घट दोनों का ग्रहण एक ही प्रकार के कारणों से होता है । किन्तु भूतल के ज्ञात होने पर भी घट ज्ञात नहीं होता है । तस्मात् घट की उक्त अनुपलब्धि से समझते हैं कि वहाँ भूतल में घट है ही नहीं । क्योंकि भूतल में घटाभाव से बिना घट की इस अनुपलब्धि की सम्भावना नहीं है । ( उ० ) यदि ऐसी बात है तो समान रूप से हम भी कह सकते हैं कि एक ज्ञान में विषय होनेवाले दो विषयों में से एक विषय की स्मृति के न रहने की दशा में यदि दूसरे की स्मृति नहीं होती है, तो फिर यह अस्मरण' ( या उस विषय की स्मृति का न होना )
ही उस दूसरे विषय के अभाव का साधक है । तदनुसार देवकुल को
देखने की सामग्नी
For Private And Personal
संयोग सम्बन्ध से रहने वाले देवदत्त को
देखने का कारण
।
( कारण समूह ) एवं देवकुल में समूह चूँकि दोनों एक ही हैं अतः जिस सामग्री से देवालय का स्मरण होगा, उसी सामग्री से देवदत्त का भी स्मरण होना चाहिए । इस उपपत्ति के अनुसार देवालय के दर्शन के समय यदि उसमें देवदत्त रहते तो देवकुल की स्मृति के बाद उनकी भी स्मृति अवश्य होती, क्योंकि देवकुल और देवदत्त दोनों की स्मृतियों के उत्पादक कारणसमूह समान रूप के हैं । किन्तु देवकुल की स्मृति होने पर भी देवदत्त का स्मरण