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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमाने उपमानान्तर्भाव
प्रशस्तपादभाष्यम् आप्तेनाप्रसिद्धस्य गवयस्य गवा गवयप्रतिपादनादुपमानमाप्तवचनमेव ।
( अज्ञ पुरुष को ) सर्वथा अज्ञात गवय का ज्ञान अप्त पुरुष से उच्चारित 'गोसदृशो गवयः' इस वाक्य से ही होता है। अत: उपमान भी आप्तवचन ( शब्द ) के ही ( अन्तर्गत ) है। ( फलतः उपमान भी अनुमान ही है )
न्यायकन्दली स्येति । कराकुञ्चनादिलक्षणोऽभिनयोऽनेनाभिप्रायेण नियत इत्येवं यत्पुरुषस्य प्रसिद्धोऽभिनयः, तस्य चेष्टया करविन्यासेनाह्वानविसर्जनादिप्रतीतिर्दश्यते नान्यस्य, अतस्तदपि चेष्टया ज्ञानमनुमानमेव ।।
उपमानस्यानुमानेऽन्तर्भावं कुर्वन्नाह-आप्तेनाप्रसिद्धस्य गवयस्य गवा गवयप्रतिपादनादुपमानमाप्तवचनमेव । आप्तिः साक्षादर्थस्य प्राप्तिः, यथार्थोपलम्भः, तया वर्तते इत्याप्तः साक्षात्कृतधर्मा यथार्थदृष्टस्यार्थस्य चिख्यापयिषया प्रयोक्तोपदेष्टा, तेनाप्तेन वनेचरेण विदितगवयेनाप्रसिद्धगवयस्याज्ञातगवयस्य नागरिकस्य कीदृग्गवय इति पृच्छतो गवा गोसारूप्येण गवयस्य
स्वरूप 'चेष्टा' नाम का एक स्वतन्त्र प्रमाण मानते हैं। उसी के खण्डन के लिए प्रसिद्धाभिन यस्य' यह वाक्य कहा गया है । 'प्रसिद्धोऽभिनयो यस्य' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिस पुरुष को यह सङ्केत ज्ञात है कि 'हाथ की ये आकुञ्चनादि क्रियायें इन अभिप्रायों से की जाती हैं' वही पुरुष प्रकृत में प्रसिद्धाभिनय' शब्द से अभीष्ट है। उसी पुरुष को 'चेष्टा' से अर्थात् हाथ के विशेष प्रकार के अभिनय या क्रिया से बुलाने या बाहर लोटने की क्रिया का बोध होता है, दूसरे को नहीं। अतः चेष्टा से उत्पन्न होनेवाला वह ज्ञान भी अनुमान ही है।
'उपमान भी अनुमान ही है, वह कोई स्वतन्त्र प्रमाण नहीं है' यह उपपादन करते हुए भाष्यकार ने 'आप्तेनाप्रसिद्धस्य गवयस्य गवा गवयप्रतिपादनमुपमानमाप्तवचनमेव यह वाक्य लिखा है। 'आप्त्या वर्तते यः स आप्तः' इस व्युत्पत्ति से ही 'आप्त' शब्द बना है। साक्षात् 'अर्थ' की प्राप्ति को ही 'आप्ति' कहते हैं जो वस्तुतः यथार्थज्ञान रूप ही हैं। तदनुसार 'आप्त' शब्द से उस विशिष्ट पुरुष को समझना चाहिये, जिसने विषयों को उनमें विद्यमान सभी धर्मों के साथ प्रत्यक्ष के द्वारा देखा है ( उनको पूर्ण रूप में यथार्थ रूप में समझा है) और उस यथार्थज्ञान से ज्ञात वस्तु के ख्यापन ( लोगों को विदित ) करने की इच्छा के द्वारा ही जो उपदेश करते हैं। वनों में रहनेवाले इस प्रकार के किसी 'आप्त' पुरुष से--जिन्हें गवय का ज्ञान है-जब 'अप्रसिद्धगवय' अर्थात् गवय को न जाननेवाले नागरिक के द्वारा 'गवय किस तरह का होता है' यह प्रश्न किया जाता है, तब उस पुरुष के द्वारा 'गवा' अर्थात् गो सादृश्य के द्वारा गवय को समझाने के
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