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মম্ব ] भाषानुवादसहितम्
१३४ न्यायकन्दली अथ मतम्-अर्थोऽर्थेनैवोपपद्यत इति तदुपपत्त्यैव तच्छब्दस्याप्युपपन्नता, किन्तु शाब्दोऽर्थः शाब्देनैवार्थेनोपपद्यते, प्रमाणान्तरावगतस्य तेन सहान्वयाभावात् । नहि पचतीत्युक्ते क्रियायाः कर्मणा विनानुपपत्तिः पच्यमानस्य कलायस्य प्रत्यक्षेणोपशाम्यति, तस्मिन् सत्यपि कि पचतीत्याकाङ्क्षाया अनिवृत्तेः । शब्दोपनीते तु कर्मणि निविचिकित्सः प्रत्ययो भवति 'शाकं पचति कलायं पचति' इति । 'पीनो दिवा न भुङ्क्ते' इत्यपि वाक्यार्थानुपपत्तिरियम, तस्मादस्यापि शाब्देनैवार्थेनोपशान्तिर्भविष्यतीति प्रथममर्थापत्या रात्रिभोजनप्रतिपादकं वाक्यमेवार्थनीयम्, अन्यथा दिवावाक्यपदार्थैः सह रात्रिभोजनस्यान्वयाभावात् । वाक्यविषये चार्थापत्तिपर्यवसाने रात्रिभोजनमर्थो नापत्तिविषयतामेति, तस्य वाक्यादेवावगमात् । न चैतद्वाच्यम्, दिवा
__यदि यह कहें कि (प्र०) यह तो ठीक है कि एक अर्थ की उपपत्ति उससे नियत दूसरे अर्थ से ही होती है, एवं अर्थ की उपपत्ति से ही तद्बोधक शब्द की भी उपपत्ति होती है। किन्तु इतना अन्तर है कि शब्द के द्वारा उपस्थित अर्थ को अनुपपन्नता शब्द के द्वारा उपस्थित दूसरे अर्थ से ही निवृत्त की जा सकती है, क्योंकि शब्द से भिन्न अन्य प्रमाणों के द्वार। उपस्थित अर्थ का अन्वय शब्द प्रमाण के द्वारा उपस्थित अर्थ के साथ नहीं होता है। जैसे कि केवल पचति' पद के उच्चारण के बाद जो कर्म के बिना पाक क्रिया की अनुगपत्ति उपस्थित होती है, उसकी निवृत्ति प्रत्यक्ष के द्वारा पकते हुए मटर ( कलाय ) को देखकर भी नहीं होती। उसके प्रत्यक्ष के बाद भी कि पचति' यह जिज्ञासा बनी ही रहती है। 'कलायम्' 'शाकम्' इत्यादि पदों के प्रयोग के बाद जब इन शब्दों से शाक या कलाय रूप कर्म उपस्थित हो जाता है, तभी 'कलाय पक रहा है' या 'शाक पक रहा है' इत्यादि आकार के निश्चयात्मक बोध होते हैं। 'पीनो दिवा न भुङ्क्ते' यहाँ वाक्य के द्वारा उपस्थित अर्थ की ही अनुपपत्ति है, अतः 'रात्रो भुङ्क्ते' इस वाक्य के द्वारा उपस्थित किये हुए रात्रिभोजन रूप अर्थ से ही उसकी निवृत्ति हो सकती है, (दूसरे प्रमाणों के द्वारा उपस्थित किये हुए रात्रिभोजन रूव अर्थ से नहीं)। अतः प्रकृत में अापत्ति से रात्रिभोजन के बोधक 'रात्रौ भुङ्क्ते' इस वाक्य की ही कल्पना करनी होगी। ऐसा न करने पर ( अर्थापत्ति के द्वारा सीधे रात्रि भोजन रूप अर्थ की ही कल्पना करने पर ) पोनो दिवा न भुङ्क्ते' इस ( दिवा ) वाक्य के द्वारा उपस्थित पदार्थों के साथ (दूसरे प्रमाण के द्वारा उपस्थित ) रात्रिभोजन रूप अर्थ का अन्वय नहीं हो सकेगा । (उ.) जब प्रकृत श्रतार्थापत्ति की विषयता केवल वाक्य के द्वारा उपस्थित अर्थ में नियत हो जाती है, तो फिर रात्रिभोजन रूप अर्थ अर्थापत्ति प्रमाण से ग्राह्य ही नहीं रह जाता, क्योंकि ( अर्थापत्ति प्रमाग के द्वारा 'रात्रौ भुङ्क्ते' इस ) वाक्य रूप शब्द प्रमाण से ही उसकी अवगति हो जाएगी। यह कहना भी उचित नहीं है कि (प्र०) 'पीनो दिवा न भुङ्क्ते' यह वाक्य और इस वाक्य के अर्थ दोनों में से किसी का भी 'रात्री भुङ्क्ते' इस वाक्य के साथ कोई नियत सम्बन्ध नहीं है, अतः इनमें से किसी के द्वारा
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