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श्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमानेऽर्थापत्त्यन्तर्भाव
न्यायकन्दली
इदमत्राकूतम् - अर्थाप्रतिपादकत्वं प्रमाणस्यानुपपत्तिः । 'दिवा न भुङ्क्ते' इति वाक्यं च स्वार्थं बोधयत्येव, का तस्यानुपपन्नता ? पीनत्वं भोजनकार्यं दिवाsभोजने सति नोपपद्यते, कारणाभावात् । तदनुपपत्तौ च वाक्यमप्यनुपपन्नम्, अनन्वितार्थत्वादिति चेत् ? तर्ह्यर्थानुपपत्तिर्वाक्यस्यानुपपन्नत्वमर्थोपपत्तिश्चोपपन्नत्वम्, न त्वस्य स्वरूपेणोपपत्त्यनुपपत्ती । दिवा न भुञ्जानस्य पीनत्वलक्षणश्चार्थो भोजनकार्यत्वाद् रात्रिभोजनरूपेणार्थेनोपपद्यते, न रात्रिभोजनवाक्येनेत्यर्थस्यानुपपत्त्या तस्य तद्वाक्यस्य चोपपत्तिहेतुरर्थ एवार्थनोयो न वाक्यम्, अनुपपादकत्वात् । उपपद्यमानश्चार्थोऽर्थेनैवावगम्यते, दिवा भोजनरहितस्य पीनत्वस्य रात्रिभोजनकार्यत्वाव्यभिचारादिति नास्त्यर्थापत्तिः शब्दगोचरा ।
देवदत्त के रात्रिभोजन की कल्पना होती है वह भी 'अनुमितानुमान' ही है । अर्थात् 'पीनः ' इस वाक्य रूप लिङ्ग ( हेतु ) से अनुमित पीनत्व ( मोटाई ) के द्वारा पीनत्व के कारणीभूत रात्रि भोजन का वहाँ भी अनुमान ही होता है ।
गूढ़ अभिप्राय यह है कि अपने अर्थ को यथार्थ रूप से की अनुपपत्ति है । 'दिवा न भुङ्क्ते' इस वाक्य का अर्थ है का ज्ञापन तो वह अवश्य ही करता है, फिर उसमें किस
(प्र०) भोजन से उत्पन्न होनेवाला पीनत्वरूप कार्य हो दिन को भोजन न करने से अनुपपन्न होता है. क्योंकि पीनत्व का कारण वही नहीं है । पीनत्व रूप अर्थ की इस अनुपपत्ति से ही 'पीनः' इत्यादि वाक्य अनुपपन्न होता है, क्योंकि ( योग्यता न रहने के कारण ) उसका अन्वय नहीं हो पाता है । ( उ० ) तो फिर यह कहिए कि अर्थ की अनुपपत्ति ही वाक्य की अनुपपत्ति है और अर्थ की उपपत्ति ही उसकी उपपत्ति है, वाक्य स्वतन्त्र रूप से
करनेवाले ( देवदत्त ) में रहनेवालो
उपपन्न या अनुपपन्न नहीं होता । दिन को भोजन न पीनता भी भोजन से ही उत्पन्न हो सकती हैं, अतः प्रकृत में रात्रिभोजन रूप अर्थ से ही उसकी उपपत्ति होती है, 'रात्री भुङ्क्ते' इस रात्रिभोजन वाक्य से नहीं । चूंकि पीनत्व रूप अर्थ की अनुपपत्ति से ही रात्रि भोजन रूप अर्थ और उसका बोधक 'रात्री- भुङ्क्ते' यह वाक्य दोनों की ही उपपत्ति होती हैं, ' रात्रौ भुङ्क्ते इस वाक्य से इसकी उपपत्ति नहीं होती है, अतः इनके लिए ‘रात्रिभोजन' रूप अर्थ की कल्पना ही आवश्यक है, 'रात्रौ भुङ्क्ते' इस वाक्य की कल्पना आवश्यक नहीं है । उपपन्न होनेवाला अर्थ' ( अपने व्याप्त ) दूसरे अर्थ से ही उपपन्न होता है; ( इस नियम के अनुसार ) चूंकि दिन में भोजन न करनेवाले देवदत्त की पीनता की व्याप्ति रात्रि भोजन रूप कार्य के साथ है, अतः दिन को न खानेवाले की पीनता रूप अर्थ की उपपत्ति रात्रि भोजन रूप अर्थ से ही होती है, तस्मात् कोई भी अर्थापत्ति 'शब्द' विषयक नहीं है, ( अर्थात् श्रुतार्थापति नाम की कोई वस्तु नहीं है ) ।
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न समझा पाना ही प्रमाणों दिन में अभोजन, इस अर्थ प्रकार की अनुपपत्ति है ?