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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशतपादभाष्यम्
सत्यपाकजः, गुणविनिवेशात् सिद्ध: । अरूपिष्वचाक्षुषवचनात् सप्त सङ्ख्यादयः । तृणकर्मवचनात् संस्कारः । स चायं द्विविधोऽणुकागुण ( कणाद के ) गुणविनिवेशाधिकार के सूत्रों से इसमें सिद्ध समझना चाहिए । 'अरूपिष्वचाक्षुषाण' (४।१।१२) रूप शून्य द्रव्यों के संख्यादि सात गुण आँखों से नहीं देखे जाते' सूत्रकार की इस उक्ति में वायु में संख्यादि सात गुणों की सत्ता समझनी चाहिए। 'तृणे कर्म्म वायुसंयोगात्' ( ५।१।१४ ) वायु प्रभृति द्रव्यों के संयोग से तृण में क्रिया उत्पन्न होती है' महर्षि कणाद की इस उक्ति से वायु में संस्कार नाम के गुण की सत्ता समझनी चाहिए। इसके भी ( १ ) अणु और ( २ ) न्यायकन्दली
[ द्रव्ये वायु
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इत्यती वैधर्म्यम् । अपाकजत्वञ्चास्य पृथिव्यनधिकरणत्वादुदकतेजःस्पर्शवत् । अनुष्णाशीतत्वे सतीत्युदक तेजःस्पर्शाभ्यां वैधर्म्यमुक्तम् । अयञ्च द्वितीयाध्यायात्-"वायुः स्पर्शवान् ” ( २।१।४ वै० सू० ) इति सूत्रेण वायौ सिद्ध इत्याहविनिवेशादिति । अरूपिष्व चाक्षुषवचनात् सप्त
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सङ्ख्यादयः । रूपरहितेषु द्रव्येषु सङ्ख्यादयश्चाक्षुषा भवन्तीत्यभिधानादरूपिषु सङख्यादीनां सद्भावः कथितः, अन्यथा तवर्तिनां तेषामप्रत्यक्षत्वाभिधानमसम्बद्धं स्यात् । तृणकर्मवचनात् संस्कार इति । " तृणे कर्म वायोः संयोगात्" ( ५।१।१४ ० सू० ) इति वचनाद् वायो संस्कारो दर्शितः, वेगरहितद्रव्यसंयोगस्य कर्महेतुत्वानुपलम्भात् । तस्य भेदनिरूपणार्थमाह - स चायमिति । स चेति स्मृत्युत्थापितो बुद्धिसन्निहितः पश्चादयमिति प्रत्यक्षवत् परामृश्यते । पृथिवी में वह नहीं है, जैसे कि जल और तेज का स्पर्श । अनुष्णाशीतत्वे सति' इस पद से ( इस अनुष्णाशीत स्पर्श में ) तेज और जल के स्पर्श से ( अपाकजत्वरूप से ) समानता होने पर भी ( अनुष्णाशीतत्वरूप से ) विभिन्नता कही गई है । यह ' स्पर्शवान् वायुः ' ( २ १ ४ ) इस सूत्र से सिद्ध है । यह विषय ' गुणविनिवेशात्सिद्ध:' इस वाक्य से कहा गया है। रूप से रहित द्रव्य के संख्यादि सात गुणों को चूंकि सूत्रकार ने 'अचाक्षुष' कहा है (४।१।११), अतः इससे ही वायु में संख्यादि सात गुणों की सत्ता भी जाननी चाहिए । अगर ऐसा न हो तो रूपशून्य द्रव्यों के संख्यादि गुणों की अचाक्षुषत्व की सूत्रकार की उक्ति असङ्गत हो जाएगी । 'तृणकर्मवचनात्संस्कारः' अर्थात् सूत्रकार ने 'तृणे कर्म वायुसंयोगात् (५।१।१४) इस सूत्र के द्वारा वायु में संस्कार नाम के गुण की सत्ता कही है, क्योंकि वेग से रहित द्रव्य का संयोग कर्म को उत्पन्न करते नहीं देखा जाता । ' स चायम्' इत्यादि वाक्य