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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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कार्याकार्यगतः संयोगः । स चैकस्माद् द्वाभ्यां बहुस्यश्च भवति । एकस्मात्तावत् तन्तुवीरणसंयोगाद् द्वितन्तुकवीरणसंयोगः । द्वाभ्यां
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संयोग से होती है, एवं इसकी स्थिति ( उस कारण के ) कार्य और ( उसी कारण के अकार्य द्रव्यों में ) रहती है । यह ( संयोगजसंयोग ) एक संयोग से, दो संयोगों से, एवं बहुत से संयोगों से भी उत्पन्न होता है । (१) ( एक संयोग से इस प्रकार उत्पन्न होता है कि ) तन्तु और वीरण ( तृणविशेष ) के एक ही संयोग से दो तन्तुओं वाले एक पट और वीरण के संयोग की उत्पत्ति होती है ।
न्यायकन्दली
कारणशब्देनात्र समवायिकारणमभिमतम्, अकारणशब्देन समवायिकारणादन्यदुच्यते । शेषमुदाहरणे व्यक्तीकरिष्यामः ।
स चैकस्माद् द्वाभ्यां बहुभ्यश्च भवति । एकस्मात् तन्तुवीरणसंयोगाद् द्वितन्तुकवीरणसंयोगः । वीरणसंयुक्तस्य तन्तोस्तत्वन्तरेण संयोगादुत्पन्नमात्रस्य द्वितन्तुकद्रव्यस्य निष्क्रियस्य समवायिकारणभूतैकतन्तुसंयोगिना वीरणेन संयोगः प्राक्तनात् तन्तुवीरणसंयोगादेकस्माद्भवति स चायं कारणाकारणपूर्वर्सयोगपूर्वकः कथ्यते, द्वितन्तुकस्य समवायिकारणं तन्तुकारणं वीरणं तयोः संयोगेन जनितत्वात् । कार्याकार्यगतश्चायं तन्तुकार्ये द्वितन्तुके
शब्द से 'समवायिकारण से भिन्न' अभिप्रेत हैं। संयोगजसंयोग की और बातें हम इसके उदाहरण में कहेंगे ।
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" स चैकस्मात् द्वाभ्यां बहुभ्यश्च भवति, एकस्मात्तन्तुवीरणसंयोगाद् द्वितन्तुकवीरणसंयोगः” अभिप्राय यह है कि जहाँ वीरण ( तृण विशेष ) के साथ संयुक्त एक तन्तु का दूसरे तन्तु के साथ के संयोग से ( द्वितन्तुक ) पट की उत्पत्ति होती है । इस ( द्वितन्तुक ) पट का उस वीरण के साथ भी संयोग होता है जो क्रिया से सर्वथा रहित है, एवं इस पट के समवायिकारणीभूत तन्तु के साथ संयुक्त है । पट एवं ( तन्तुसंयुक्त ) वीरण का यह संयोग ( कथित ) तन्तु और वीरण के संयोग से ही उत्पन्न होता है । इसी प्रकार का संयोगजसंयोग 'कारणाकारणसंयोगपूर्वक' कहलाता है, क्योंकि उक्त द्वितन्तुक पटका समवायिकारण है तन्तु, एवं अकारण है वीरण, इन दोनों के संयोग से वह उत्पन्न होता है | यह (संयोगजसंयोग ) 'कार्याकार्यगत' भी है, क्योंकि ( असमवायिकारणीभूत तन्तु और वीरण के संयोग का एक सम्बन्धी ) तन्तु के कार्य द्वितन्तुक पट एवं उस तन्तु के अकार्य वीरण इन दोनों में वह संयोग समवाय सम्बन्ध से है । उक्त ( पट और वीरण के ) संयोग का ( असमवायि ) कारण ( तन्तु और वीरण का संयोग ही है, क्योंकि यहाँ कोई दूसरा असमवायिकारण नहीं हो सकता । अतः संयोग में संयोग की कारणता परिशेषा
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