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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ गुणेऽनुमाने शब्दान्तर्भाव
न्यायकन्दली कालोनो नार्थप्रतिपादनात् पूर्व सम्भवति । नाप्यग्निधूमयोरिव शब्दार्थयोरस्त्यविनाभावनियमः, देशकालव्यभिचारात्; तद्वयभिचारश्चासत्यपि युधिष्ठिरे कलौ युधिष्ठिरशब्दप्रयोगात्, असत्यामपि लङ्कायां जम्बुद्वीपे लङ्का शब्दश्रवणात् । तस्मादनुमानसामग्रीवैलक्षण्याच्छब्दो नानुमानम्, देशविशेषेऽर्थव्यभिचारात् । न धूमो वह्नि क्वचिद् व्यभिचरति, शब्दस्तु स्वार्थ व्यभिचरति । तथा हि चौर इति भक्ताभिधानं दाक्षिणात्यानाम्, आर्यावर्तनिवासिनां तु तस्कराभिधानम् ।
यदि च शब्दोऽनुमानं त्रैरूप्यप्रतीत्याऽस्य प्रामाण्यनिश्चयः स्यात्, नाप्तोक्तत्वप्रतीत्या; तत्प्रतीत्या तु निश्चीयमाने प्रामाण्येऽनुमानाद् व्यतिरिच्यत एव ! एवं वैधात् ।
अत्रोच्यते-य/कृतायां तर्जन्यां देशकालव्यवहितेष्वर्थेषु दशसंख्यानुमान न तत्र संख्या धर्मिणी, अप्रतीयमानत्वात् । नापि तर्जनीविन्यासो धर्मो, तस्य
शब्द और अर्थ में 'अविनाभाव' (व्याप्ति ) सम्बन्ध है भी नहीं, क्योंकि जिस देश या जिस काल में शब्द या अर्थ है, उस देश और उस काल में अर्थ या शब्द अवश्य रहता ही नहीं है, क्योंकि कलिकाल में युधिष्ठिर रूप अर्थ की सत्ता न रहने पर भी युधिष्ठिर शब्द का प्रयोग होता है, एवं लङ्का नगरी की सत्ता जम्बुद्वीप में वर्तमान काल में न रहने पर भी 'लङ्का' शब्द का प्रयोग होता है । अतः यह मानना पड़ेगा कि शब्द प्रमाण अनुमान प्रमाण से भिन्न है, क्योंकि विशेष प्रकार के कई देशों में शब्द के साथ अर्थ का व्यभिचार देखा जाता है। धूम का वह्नि के साथ व्यभिचार कहीं नहीं देखा जाता, किन्तु शब्द के साथ अर्थ का व्यभिचार देखा जाता है। जैसे कि एक ही 'चौर' शब्द का प्रयोग दाक्षिणात्य लोग भात के अर्थ में करते हैं, किन्तु उसी 'चौर' शब्द को आर्य लोग 'तस्कर' (चोर) अर्थ में प्रयोग करते हैं।
दूसरी बात यह है कि शब्द यदि अनुमान रूप से ही प्रमाण होता तो उससे अर्थ बोध के लिए उसका ( पक्षमत्त्वादि) तीनों रूपों से ज्ञान की ही अपेक्षा होती ( जैसे कि सभी अनुमानों में होता है ), आप्तोक्तत्व निश्चय की नहीं। यदि शब्द में आतोक्तत्व के निश्चय के बाद ही प्रामाण्य का निश्चय होता है, तो फिर अवश्य ही शब्द अनुमान से भिन्न प्रमाण है, क्योंकि दोनों के स्वरूप भिन्न हैं ।
___ इस प्रसङ्ग में हम लोग कहते हैं कि ( यह सङ्केत कर लेने पर कि यदि केवल तर्जनी अगुली को ऊपर उठावें तो उससे दश संख्या को समझना, इसके बाद तर्जनी अगुली को ऊपर उठाने पर उस सङ्केत को समझनेवाले को दश संख्या का अनुमान होता है, जिस दश संख्या का आश्रयीभूत द्रव्य उस बोद्धा पुरुष के आश्रयीभूत देश और काल से भिन्न देश और भिन्न काल का होता है। इस अनुमान में पक्ष कौन होता है ?
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