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प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम्
५१५ न्यायकन्दली प्रतिपाद्यमानतया दशसंख्यया सह सम्बन्धान्तराभावेन तद्विशिष्ट प्रतिपादनायोगात । नाप्यनयोरेकदेशता, नाप्येककालत्वम, कथमनमानप्रवृत्तिः ? क्रयविक्रयव्यवहारे वणिजां तथाविधतर्जनीविन्यासस्य दशसंख्याप्रतिपादनाभिप्रायाव्यभिचारोपलम्भात् । कर्तस्तत्प्रतिपादनाभिप्रायावगतिमुखेनास्य दशसंख्याप्रतीतिहेतुत्वमिति चेत् ? शब्दस्याप्येवमेव। प्रथमं गोशब्दादुच्चारिताद् वक्तुः ककुदादिमदर्थविवक्षा गम्यते, स्वसन्ताने गोशब्दोच्चारणस्य पदार्थविवक्षापूर्वकत्वोपलम्भात् । तदर्थविवक्षया चार्थानुमानम् । अयं चात्र प्रयोगः-पुरुषो धर्मी ककुदादिमदर्थविवक्षावान, गोशब्दोच्चारणकर्त्त त्वादहमिवेति । अर्थाभावेऽप्यनाप्तानां विवक्षोपलब्धेर्न विवक्षातोऽर्थसिद्धिरिति चेत् ? शब्दादपि कथं तसिद्धिः ? संख्या तो इस अनुमान का पक्ष हो नहीं सकती, क्योंकि वह पहिले से प्रतीत नहीं है। तर्जनी का ऊपर उठाना ( विन्यास ) भी उस अनुमान का धर्मी नहीं हो सकता, क्योंकि इस अनुमान के द्वारा मुख्य ज्ञाप्य दश संख्या के साथ उसका कोई (सङ्केत सम्बन्ध को छोड़कर) दूसरा ( स्वाभाविक संयोग समवायादि) सम्बन्ध नहीं है। अत: दशसंख्यारूप साध्य धर्म से युक्त तर्जनी विन्यास रूप धर्मी का बोध इस अनुमान के द्वारा नहीं हो सकता, क्योंकि तर्जनी विन्यास और प्रकृत दशसंख्या न एक काल के हैं, न एक देश के। अतः तर्जनी के उक्त विशेष प्रकार के विन्यास से दशसंख्या में जो अनुमान की प्रवृत्ति होती है, वह कैसे हो सकेगी? यदि यह कहें कि (प्र.) खरीद बिक्री के प्रसङ्ग में बनियों में यह अव्यभिचरित नियम प्रचलित है कि केवल तर्जनी को उठाने से दश संख्या को समझना, अतः उक्त वर्जनी विन्यास से तर्जनी को ऊपर उठानेवाले पुरुष के इस अभिप्राय का बोध होता है कि 'तर्जनी को ऊपर उठाने से इस पुरुष को दश संख्या का बोध, अभिप्रेत है। इसी रोति से इसके बाद तर्जनी के उक्त विन्यास से दश संख्या का अनुमान होता है । (उ०) तो फिर शब्द से अर्थानुमान के प्रसङ्ग में भी यही रीति समझिए कि (श्रोता) पुरुष को वक्ता के द्वारा उच्चरित गो शब्द (के श्रवण) से ककुदादि धर्मों से युक्त (बैल) जीव को समझाने के लिए वक्ता के शब्द प्रयोग की इच्छा (विवक्षा) ज्ञात होती है, क्योंकि श्रोता अपने ज्ञात शब्द समूहों में से जब गोशब्द का उच्चारण करता है, उससे पूर्व उसे ककुदादि से युक्त अर्थ की विवक्षा का अपने में बोध होता है। इस प्रसङ्ग में अनुमान का प्रयोग इस प्रकार है कि जिस प्रकार मेरे द्वारा गोशब्द के उच्चारण से पहिले मुझमें ककुदादि धर्मों से युक्त अर्थ की विवक्षा रहती है, उसी प्रकार यह गोशब्द को उच्चारण करनेवाला पुरुष रूप धर्मी भी ककुदादि धर्मों से युक्त अर्थ की विवक्षा से युक्त है, क्योंकि यह भी गोशब्द का उच्चारण का कर्ता है। (प्र.) अर्थ की सत्ता न रहने पर भी अनाप्त ( अविश्वास्य ) लोगों में उस अर्थ को विवक्षा देखी जाती है, अत: विवक्षा से अर्थ की सिद्धि नहीं की जा सकती। (उ०) शब्द
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