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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् काले दिपिण्डसंयोगविनाशाद् गुणस्य विनाशः ।
द्रव्य विनाशादपि कथम् ? परत्वाधारावयवे कर्मोत्पन्न यस्मिन्नेव कालेऽवयवान्तराद विभागं करोति तस्मिन्नेव कालेऽपेक्षाभूत द्रव्य इन दोनों के) संयोग के विनाश से परत्वादि गुणों का विनाश होता है।
(३) ( प्र०) ( आधारभूत ) द्रव्य के विनाश से (परत्वादि गुणों का) विनाश किस प्रकार : किस स्थिति में ) होता है ? ( उ० ) (जहाँ) परत्वादि गुणों के आधारभूत द्रव्य ( के एक अवयव) में उत्पन्न हुई क्रिया जिस समय एक अवयव का दूसरे अवयव से विभाग को उत्पन्न करती है,
न्यायकन्दली बद्धश्च परत्वस्योत्पत्तिरित्येकः कालः। तत उत्पन्ने परत्वे परत्वसामान्यबुद्धरुत्पत्तिः दिक्पिण्डसंयोगस्य च विभागाद् विनाश इत्येकः कालः। ततो यस्मिन्नेव काले सामान्यज्ञानाद् गुणबुद्धिरुत्पद्यते तस्मिन्नेव काले दिपिण्डसंयोगविनाशात् परत्वस्य विनाशो नापेक्षाबुद्धिविनाशात्, अपेक्षाबुद्धरपि तदानीमेव विनाशात् ।
द्रव्यविनाशादपि कथं विनाश इत्याह-परत्वाधारावयव इति । भविष्यतः परत्वस्याधारो द्रव्यम्, तस्यावयवे कर्मोत्पन्नं यदाऽवयवान्तराद् विभागं करोति, तस्मिन्नेव कालेऽपेक्षाबुद्धिरुत्पद्यते। ततो विभागाद् यस्मिन्नेव काले द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशः, तस्मिन्नेव कालेऽपेक्षाबुद्धेः परत्वमुत्पद्यते। ततः अपेक्षाबुद्धि के द्वारा परत्व की उत्पत्ति होती है। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद जिस समय (परत्व गत जातिरूप ) सामान्य के ज्ञान से गुणविशिष्टद्रव्य विषयक बुद्धि की उत्पत्ति होती है, उसी समय दिशा और (परत्व के आधारभूत द्रव्य रूप) पिण्ड इन दोनों के संयोग के विनाश से परत्व का भी विनाश होता है। (यहाँ) परत्व का विनाश अपेक्षाबुद्धि के विनाश से सम्भव नहीं है, क्योंकि उसी समय (परत्वनाश के समय ही ) अपेक्षाबुद्धि का भी विनाश होता है।
(३) ( आधारभूत ) द्रव्य के विनाश से परत्वादि का बिनाश किस प्रकार होता है ? इस प्रश्न का उत्तर परत्वाधारायवे' इत्यादि ग्रन्थ से दिया गया है। उत्पन्न होनेवाले परत्व के आधारभूत अवधि प्रव्य ही (प्रकृत में 'परत्वाधार शब्द से इष्ट है) इस (द्रव्य ) के अवयव में उत्पन्न हुई क्रिया जिस समय ( अपने आधारभूत एक अवयव द्रव्य का) दूसरे अवयव से विभाग को उत्पन्न करती है, उसी समय अपेक्षाबुद्धि भी उत्पन्न होती है। इसके बाद जिस समय विभाग से द्रव्य के उत्पादक संयोग का वि नाश
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