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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणे परत्वापरत्व
प्रशस्तषादभाष्यम् बुद्धेश्चापेक्षावुद्धिविनाश इत्येकः कालः । ततो द्रव्यापेक्षाबुद्धयोविनाशात् परत्वस्य विनाशः ।
द्रव्यसंयोगविनाशादपि कथम् ? यदा परत्वाधारावयवे कर्मोत्पन्नमवयवान्तराद् विभागं करोति तस्मिन्नेव काले पिण्डकर्मापेक्षाबुद्धयोर्युगपदुत्पत्तिः । ततो यस्मिन्नेव काले परत्वस्योत्पत्तिस्तस्मिन्नेव काले विभाद्रव्य का नाश एवं उक्त सामान्यविषयक बुद्धि और अपेक्षाबुद्धि इन दोनों का भी नाश होता है। इसके बाद उक्त द्रव्यनाश और अपेक्षाबुद्धि का विनाश इन दोनों से परत्वादि गुणों का विनाश होता है।
(५) (प्र०) द्रव्यनाश और संयोगनाश इन दोनों से परत्वादि गुणों का विनाश ( कहाँ और ) किस स्थिति म होता है ? ( उ० ) ( जहाँ ) जिस समय परत्वादि के आधारभूत द्रव्य के अवयव में उत्पन्न क्रिया उसके दूसरे अवयव से विभाग को उत्पन्न करती है, उसी समय परत्वादि के आधार. भूत ( अवयवि ) द्रव्य में भी क्रिया एवं अपेक्षाबुद्धि दोनों की उत्पत्ति पहिले की तरह होती है, इसके बाद जिस समय परत्वादि गुणों की उत्पत्ति होती है, उसी
न्यायकन्दली द्रव्यसंयोगविनाशादपीत्यादि। द्रव्यसंयोगविनाशादपि कथं ? विनाशः ? यदा परत्वाधारावयवे कर्मोत्पन्नमवयवान्तराद् विभागं करोति, तस्मिन्नेव काले पिण्डकर्मापेक्षाबुद्धयोयुगपदुत्पत्तिः। ततो यस्मिन्नेव काले परत्वस्यो. त्पत्तिस्तस्मिन्नेव कालेऽवयवविभागाद् द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशः, पिण्डकर्मणा च दिपिण्डस्य च विभाग: नियत इत्येकः कालः। ततो यस्मिन्नेव काले सामान्यबुद्धिरुत्पद्यते तस्मिन्नेव काले द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशात् पिण्ड
(५) 'द्रव्यसंयोगादपि' इत्यादि भाष्यग्रन्थ के द्वारा यह प्रश्न किया गया है कि द्रव्य का विनाश और संयोग का विनाश इन दोनों से परत्वादि का विनाश कैसे होता है ? ( उ० ) ( जहाँ ) जिस समय परत्वादि के आधारभूत अवयव में कर्म उत्पन्न होकर अपने आश्रयरूप अवयव का दूसरे अवयवों से विभाग को उत्पन्न करता है, उसी समय एक साथ ही अवयवी में क्रिया और अपेक्षाबुद्धि इन दोनों की उत्पत्ति होती है । इसके बाद जिस समय परत्व की उत्पत्ति होती है, उसी समय अवयवों के विभाग से द्रव्य के उत्पादक संयोग का भी विनाश होता है। एवं अवयवी की क्रिया के द्वारा दिशा से अवयवि कविभाग भी उत्पन्न होता है। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद जिस समय : परत्व गुण में रहने वाले ) सामान्य का ज्ञान होता है, उसी समय द्रव्य के उत्पादक संयोग के विनाश से अवयवी का विनाश भी उत्पन्न होता
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