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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
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प्रशस्तपादभाष्यम् बुद्धितोऽपेक्षाबुद्धिविनाशः, विभागाच्च दिपिण्डसंयोगविनाश इत्येका कालः । ततः संयोगापेक्षाबुद्धिविनाशात् परत्वस्य विनाशः। त्रयाणां समवाय्यसमवायिनिमित्तकारणानां युगपद् विनाशादपि कथम् ? यदापेक्षाबुद्धिरुत्पद्यते तदा पिण्डावयवे कर्म, ततो यस्मिन्नेव काले कर्मणाऽ. वयवान्तराद् विभागः क्रियतेऽपेक्षाबुद्धेः परत्वस्य चोत्पत्तिस्तस्मिन्नेव काले पिण्डेऽपि कर्म, ततोऽवयवविभागात् पिण्डारम्भकसंयोग
(७) ( प्र.) समवायिकारण (परत्वादि के आधारभूत द्रव्य ) असमवायिकारण ( दिकप्रदेशसंयोग ) और निमित्तकारण ( अपेक्षाबुद्धि ) इन तीनों के नाश से परत्वादि गुणों का नाश ( कहाँ और ) किस स्थिति में होता है ? ( उ. ) जहाँ जिस समय अपेक्षाबुद्धि की उत्पत्ति होती है, उसी समय ( परत्वादि के समवायिकारण ) पिण्ड के अवयव में क्रिया उत्पन्न होती है। इसके बाद जिस समय उक्त क्रिया से ( एक अवयव का ) दूसरे अवयव से विभाग उत्पन्न होता है, उसी समय अपेक्षाबुद्धि और परत्वादि गुण इन दोनों की उत्पत्ति होती है। एवं पिण्ड ( अवयवि) में भी क्रिया उसी समय उत्पन्न होती है। इसके बाद अवयवों के उक्त विभाग से पिण्ड के
न्यायकन्दली समवायि चासमवायि च निमित्तं च समवाय्यसमवायिनिमित्तानि, तानि च कारणानि चेति समवाय्यसमवायिनिमित्तकारणानि द्रव्यसंयोगापेक्षाज्ञानानि, तेषां त्रयाणां युगपद् विनाशात् कथं परत्वस्य विनाश इति प्रश्ने कृते प्रत्युत्तरमाह-यदेति । इत्येतत् सर्वं युगपद् भवति कारणयौगपद्यात्, ततश्च त्रयाणां समवाय्यसमवायिनिमित्तकारणानां विनाशात् परत्वस्य विनाश इति । परत्वस्य विनाश इत्युपलक्षणमिदम् । अपरत्वस्याप्ययमेव विनाशक्रमो दर्शयितव्यः।
संयोग रूप असमवायिकारण, एवं अपेक्षाबुद्धि रूप निमित्तकारण, इन तीनों कारणों के एक ही समय विनाश के कारण परत्व का विनाश किस प्रकार होता है ? इसी प्रश्न के उत्तर में 'यदा' इत्यादि भाष्य सन्दर्भ लिखा गया है। अर्थात् जब एक ही समय उक्त तीनों कारणों के विनाश कारण समूह एकत्र हो जाते हैं, तो फिर तीनों का एक ही समय विनाश हो जाता है । इसके बाद परत्व के तीनों कारणों के विनाश से परत्व का विनाश होता है। इस प्रकरण में 'परत्वविनाश' शब्द उपलक्षणमात्र है ( नियामक नहीं), अतः इसीसे अपरत्व नाश का भी यही क्रम जानना चाहिए ।
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