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४४० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[ गुणे त्वप्नप्रशस्तपादभाष्यम् दृषितो वा आकाशगमनादीन् पश्यति । पित्तप्रकृतिः पित्तदूषितो वाग्निप्रवेशकनकपर्वतादीन् पश्यति । श्लेष्मप्रकृतिः श्लेष्मदूषितो वा सरित्समुद्रप्रतरणहिमपर्वतादीन् पश्यति । यत् स्वयमनुभूतेष्वननुभूतेषु वा प्रसिद्धार्थेष्वप्रसिद्धार्थेषु वा यच्छुभावेदकं गजारोहगच्छत्रलाभादि, तत् सर्व संस्कारधर्माभ्यां भवति । विपरीतं च तैलाभ्यञ्जनखरोष्ट्रारोहणादि तत् सर्वमधर्मसंस्काराभ्यां भवति । अत्यन्ताप्रसिद्धाऽर्थेष्वदृष्टादेवेति । स्वप्नान्तिकं यद्यप्युपरतेन्द्रियग्रामस्य धातु दोष से उत्पन्न स्वप्नज्ञान के उदाहरण ये हैं-वायुप्रकृति के पुरुष अथवा प्रकुपित वायु के पुरुष को आकाश गमनादि के प्रत्यक्ष सदृश ज्ञान होते हैं। पित्तप्रकृति के अथवा कुपित पित्त के पुरुष को अग्निप्रवेश, स्वर्णमय पर्वतादि का प्रत्यक्ष सा होता है। कफ प्रकृतिक अथवा दूषित कफवाले पुरुष को नदी समुद्रादि में तैरने का एवं वर्फ से भरे पर्वत का प्रत्यक्ष सा होता है। (अदृष्टजनित स्वप्न के ये उदाहरण हैं ) स्वयं ज्ञात एवं दूसरों के लिए अज्ञात, एवं स्वयं अज्ञात दूसरों से ज्ञात और विषयों के जितने स्वप्नज्ञान शुभ के सूचक हैं, वे सभी संस्कार और धर्म (रूप अदृष्ट ) से उत्पन्न होते हैं। जैसे कि गजारोहण, छत्रलाभादि के स्वप्न ज्ञान । एवं उन्हीं विषयों के जितने स्वप्नज्ञान अशुभ के सूचक हैं, वे सभी अधर्म ( रूप अदृष्ट और संस्कार से उत्पन्न होते हैं। जैसे कि तैल का मालिश, खरारोहण, उष्ट्रारोहण आदि के स्वप्न ज्ञान । स्वयं भी अज्ञात एवं दूसरे से भी अज्ञात ( सर्वथा अप्रसिद्ध ) विषयों के दर्शन रूप स्वप्नज्ञान केवल अदृष्ट से ही होते हैं। यद्यपि (उक्त प्रकार से ) जिनकी इन्द्रियाँ अपने कार्य से विमुख हो गयी हैं उन्हें 'स्वप्नान्तिक' नाम का एक पाँचवाँ ( स्वप्न से भिन्न ) भी एक
न्यायकन्दली प्रसिद्धषु स्वयमननुभूतेषु वा परत्र प्रसिद्धेषु सत्सु यद् गजारोहणच्छत्रलाभादिकं शुभावेदकं स्वप्ने दृश्यते, तत् सर्वं संस्कारधर्माभ्यां भवति । शुभावेदकविपरीतं उत्पत्ति होती है। यही विषय 'वातप्रकृतिः' इत्यादि बाक्य के द्वारा कहा गया है। 'वातप्रकृति' अर्थात् किसी कारण से जिस पुरुष की वायु दूषित हो चुकी है, वह पुरुष अपना 'आकाशगमन' अर्थात् आकाश में इधर उधर दौड़ना प्रभृति ( स्वप्न ) देखता है । एवं जिस पुरुष में पित्त प्रधान है अथवा जिसका पित्त दूषित हो चला है वह अग्नि
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