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४८.
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे अनुमान
प्रशस्तपादभाष्यम् विपरीतमतो यत् स्यादेकेन द्वितयेन वा ।
विरुद्धासिद्धसन्दिग्धमलिङ्गं काश्यपोऽब्रवीत् ।। यदनुमेयेनार्थेन देशविशेषे कालविशेषे वा सहचरितमहो, ऐसे आश्रयों में जो कदापि न रहे ( इसे विपक्षासत्त्व कहते हैं ), वही ( पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व से युक्त ) हेतु साध्य का ज्ञापक है। ( सपक्षसत्त्वादि इन तीन) लक्षणों में से एक या दो लक्षणों से भी रहित हेतु को काश्यप ने असिद्ध, विरुद्ध और सन्दिग्ध नाम का हेत्वाभास कहा है।
(लिङ्ग के लक्षण बोधक कथित पहिले श्लोक का यह अभिप्राय है कि ) जो साध्य के साथ किसी समयविशेष में एवं देशविशेष में सम्बद्ध
न्यायकन्दली साध्यधर्मस्यैव परामर्शः, तस्य साध्यधर्मस्याभावे नास्त्येव न पुनरेकदेशेऽस्त्यपीत्यनकान्तिकव्यवच्छेदः । तल्लिङ्गमनुमापकम् अनुमेयस्य ज्ञापकम् ।
लिङ्गं व्याख्याय लिङ्गाभासं व्याचष्टे-विपरीतमतो यत् स्यादिति । अत उक्तलक्षणाल्लिङ्गाद् यदेकेन द्वितयेन लिङ्गलक्षणेन विपरीतं रहितं विरुद्धमसिद्ध सन्दिग्धम्, तत् कश्यपात्मजोऽलिङ्गमनुमेयाप्रतिपादकमब्रवीत् । असिद्धमनुमेये नास्ति, अनैकान्तिक विपक्षादव्यावृत्तमित्यनयोरेकेन लिङ्गलक्षणेन विपरीतत्वम् ।
और पक्षवृत्ति) हेतु' है। उक्त वाक्य में प्रयुक्त एवं' शब्द के द्वारा यह सूचित किया गया है कि ऐसे किसी भी आश्रय में हेतु को न रहना चाहिए जिसमें कि साध्य न रहे। इस प्रकार इस विशेषण के द्वारा अनेकान्तिक नाम के हेत्वाभास में हेतु लक्षण की अतिव्याप्ति का वारण होता हैं। 'तल्लिङ्गमनुमापकम्' (अर्थात् उक्त पक्षवृत्तित्व, सपक्षवृत्तित्व और विपक्षावृत्तित्व इन ) तीनों लक्षणों से युक्त हेतु ही साध्य का ज्ञापक है ।
लिङ्ग के लक्षण के कहने के बाद अब 'विपरीतमतो यत् स्यात्' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा लिङ्गाभास ( हेत्वाभास ) का लक्षण कहते हैं । 'अत.' अर्थात् हेतु के कथित तीनों लक्षणों में से हेतु के एक या दो लक्षणों से 'विपरीत' अर्थात् शून्य हेतु को 'काश्यप' ने अर्थात् कश्यप के पुत्र ने क्रमशः विरुद्ध, असिद्ध और सन्दिग्ध नाम का 'अलिङ्ग' ( हेत्वाभास) कहा है, क्योंकि ये अनुमेय के ज्ञापक नहीं हैं। इनमें 'असिद्ध' नाम का हेत्वाभास अनुमेय ( पक्ष) में रहीं रहता, ( अर्थात् उसमें पक्षवृत्तित्व रूप एक धर्म का अभाव है ), 'अनैकान्तिक' नाम का हेत्वाभास विपक्ष से अव्यावृत्त है, अर्थात् विपक्षावृत्तित्वरूप हेतु के एक ही लक्षण से रहित होने के कारण हेत्वाभास है ( इस प्रकार असिद्ध और अनेकान्तिक ये दोनों हेतु के एक ही लक्षण से रहित होने के कारण
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