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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् एवं सर्वत्र देशकालाविनाभूतमितरस्य लिङ्गम् । शास्त्रे च कार्यादिग्रहणं निदर्शनार्थ कृतं नाव
इसी प्रकार और सभी स्थानों में एक वस्तु में जिस किसी दूसरी वस्तु की दैशिक और कालिक व्याप्ति रहती है, वह एक वस्तु उस दूसरे का ज्ञापक हेतु होता है। वैशेषिक सूत्र में जो व्याप्ति के लिए कार्यादि सम्बन्धों का उल्लेख है, वह
न्यायकन्दली
एवं देशकालाविनाभूतमितरस्य लिङ्गम्, यथा धूमो वह्नलिङ्गम्। एवं देशाविनाभूतं कालाविनाभूतं चेतरस्य साध्यधर्मस्य लिङ्गम्। यथा काश्मीरेषु सुवर्णभाण्डागारिकपुरुषैर्यववाटिकासंरक्षणं यवनालेषु हेमाङकुरोद्भदस्य लिङ्गम् । कालाविनाभूतं यथा प्राग्ज्योतिषाधिपतेर्वेश्मनि प्रातर्गायनादीनि नृपतिप्रबोधस्य लिङ्गम् । यदि देशकालाविनाभावमात्रेण गमकत्वं ननु सूत्रविरोधः ? अस्येदं कार्य कारणं संयोगि विरोधि समवायि चेति लैङ्गिकमिति,
समझ में ही नहीं आता कि प्रत्यक्ष के द्वारा किसमें उत्पत्ति का निश्चय होगा? जिससे कि अनुमान की प्रवृत्ति होगी ।
इसी प्रकार ( साध्य की ) दैशिक या कालिक व्याप्ति से युक्त एक पदार्थ ( हेतु ) दूसरे ( साध्य ) का ज्ञापक हो जाता है । जैसे कि धूम वह्नि का ज्ञापक हेतु है । ( अभिप्राय यह है कि) देशिक और कालिक व्याप्ति से युक्त 'एक' ( हेतु) पदार्थ इतर' का अर्थात् साध्य रूप धर्म का ज्ञापक हेतु होता है । (देशिक व्याप्ति से युक्त हेतु का उदाहरण यह है ) जैसे कि काश्मीर देश में जब यह देखा जाता है कि यव के क्यारियों का संरक्षण सोने के खजाने के अधिकारी लोग कर रहे हैं, तब यह समझा जाता है कि यव की क्यारियों में केसर के अङ्कुर उग आये हैं अतः काश्मीर देश की यव की क्यारियों का सोने के खजाने के अधिकारियों द्वारा संरक्षण ( रूप क्रिया ) यव को क्यारियों में केसर के अङ्कर का ज्ञापक हेतु है। ( एवं कालिक व्याप्ति से युक्त हतु का उदाहरण यह है ) जैसे कि प्राग्ज्योतिषपुर ( आसाम ) के राजगृह में प्रातःकालिक गाना बजाना वहाँ के राजा के जागरण का ज्ञापक हेतु है । (प्र. ) यदि दैशिक पाप्ति और कालिक व्याप्ति केवल इन दोनों सम्बन्धों में से किसी के रहने से ही हेतु में साध्य को समझाने का सामर्थ्य माना जाय
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