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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
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५०७
सामान्यतोदृष्टं
च ।
तत्र
तत्त्
द्विविधम्- दृष्टं
दृष्टं प्रसिद्धसाध्ययोरत्यन्तजात्यभेदेऽनुमानम् । यथा गव्येव ( १ ) दृष्ट और ( २ ) सामान्यतोदृष्ट भेद से अनुमान दो प्रकार का है । जिस हेतु के साथ पूर्व में ज्ञात साध्य और वर्तमान में उसी हेतु के ज्ञाप्य साध्य दोनों अभिन्न हों, उस हेतु से उत्पन्न अनुमान ही 'दृष्ट' अनुमान है । जैसे कि पहिले एक स्थान में गाय में ही केवल सास्नारूप हेतु
न्यायकन्दली
देशकालाद्यविनाभूतं तत् तस्य लिङ्गमित्युक्तम्, तदेव हि तस्य यद् यस्याध्यभिचारि (त्वेन ) ( यद्यस्य) व्यभिचारि न तत् तस्य, अन्यत्रापि भावात् । अपि भोः ! किमस्येदं कार्यमिति न सम्बध्नातीति ब्रूनहे, कार्यादिग्रहणं तह किमर्थम् ? निदर्शनार्थमित्युक्तम् । अवश्यं हि शिष्यस्योदाहरणनिष्ठं कृत्वा किमप्यव्यभिचारि लिङ्ग दर्शनीयमिति सूत्रे कार्यादिकमुदाहृतम् । न तावन्त्येव लिङ्गानीत्यर्थः ।
भेदं कथयति तत्तु द्विविधं दृष्टं सामान्यतोदृष्टं चेति । चशब्दोऽवधारणार्थः । तदनुमानं द्विविधमेव दृष्टमेकमपरं सामान्यतोदृष्टम् । तत्र तयोर्मध्ये दृष्टं प्रसिद्धकि 'इस साध्य का यही लिङ्ग है'। इस प्रकार सामान्य रूप से साध्य के सभी सम्बन्धियों में लिङ्गत्व का प्रतिपादन एवं सर्वत्र देशकालाविनाभूतमितरस्य लिङ्गम्' इस भाष्य के द्वारा किया गया है । अर्थात् जिसमें जिस दूसरे वस्तु की दैशिकी या कालिको व्याप्ति है, वही उसका हेतु है । जिसमें जिसका व्यभिचार है, वह उसका हेतु नहीं है. क्योंकि उसके न रहने के स्थान में भी वह रहता है । (प्र०) तो क्या उक्त सूत्र में 'कमस्येदं कार्यम्' इस वाक्य के द्वारा यह कहते हैं कि 'साध्य का सम्बन्ध हेतु में नहीं है' ? यदि ऐसी बात है तो फिर 'कार्यादि' का उपादान
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हो उक्त सूत्र में व्यर्थ है ? इसी प्रश्न का उत्तर निदर्शनार्थम्' इस वाक्य से दिया गया है। अभिप्राय यह है कि शिष्यों को उदाहरण के द्वारा पूर्ण अभिज्ञ बनाकर ही यह समझना होगा कि 'साध्य का अव्यभिचारी ही उसका लिङ्ग है' । अतः सूत्र में कार्यादि सम्बन्धों का उल्लेख केवल उदाहरण के लिए है। इसका यह अभिप्राय नहीं है कि सूत्र में कथित कार्यत्वादि सम्बन्धों से युक्त ही हेतु हैं, साध्य के और सम्बन्धों से युक्त भी हेतु हो सकते हैं, यदि वह सम्बन्ध अव्यभिचरित हो ।
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'तत्तु द्विविधम् - दृष्टम्, सामान्यतो दृष्टच' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा अनुमान के अवान्तर प्रकारों का निरूपण किया गया है । उक्त वाक्य में प्रयुक्त 'च' शब्द 'अवधारण' अर्थ का है । (तदनुसार उक्त वाक्य का यह अर्थ है कि ) कथित अनुमान दो ही प्रकार का है, एक है 'हट' और दूसरा है 'सामान्यतोदृष्ट' | 'तत्र' अर्थात् उन दोनों अनुमानों में से 'दृष्टं प्रसिद्धसाध्ययोजत्यभेदेऽनुमानम्' 'प्रसिद्ध' अर्थात् हेतु के साथ पहिले