________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
૪૯૨
www.kobatirth.org
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् न्यायकन्दली
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ गुणे अनुमान
वयर्थ्यम्, अवयवान्तरैरप्रतिपादितस्य पक्षधर्मत्वस्य प्रतिपादनार्थ परार्थानुमा तस्योपन्यासात् ।
अपि भोः । कोऽयमविनाभावो नाम ? अव्यभिचारः । स कस्माद्भवति ?
तादात्म्यतदुत्पत्तिभ्यामिति सौगताः । यादृच्छिकः सम्बन्धो यथैव भवति, न भवत्यपि तथा च नियमहेतोरभावः । तत्र यदि नाम सपक्षे दर्शनमदर्शनं च विपक्षे, तथाप्यव्यभिचारो न शक्यते ज्ञातुम्, विपक्षवृत्तिशङ्काया अनिवारणात् । तदुत्पत्तिविनिश्चये तु शङ्का निवार्यते, कारणेन विना कार्यस्यात्मलाभासंभवात् । तदुत्पत्तिविनिश्चयोऽपि कार्यहेतुः पञ्चप्रत्यक्षोपलम्भानुपलम्भसाधनः । कार्यस्योत्पत्तेः प्रागनुपलम्भः, कारणोपलम्भे सत्युपलम्भः, उपलब्धस्य
( अर्थात् अनुमिति का पक्षधर्मताज्ञान रूप लिङ्गदर्शन ) जिस पक्ष में होगा, अनुमिति भी नियमतः उसी पक्ष में होगी । एवं उपनय रूप अवयव वाक्य के वैयर्थ्य की आपत्ति भी नहीं होगी, क्योंकि पक्षमता का प्रतिपादन अन्य अवयव वाक्यों से सम्भव नहीं है, अतः पक्षधर्मता का प्रतिपादन करने के लिए ही उपनय वाक्य का परार्थानुमान में प्रयोग होता है
( प्र० ) यह 'अविनाभाव' क्या वस्तु है ? यदि यह कहें कि ( उ० ) अव्यभिचार ही अविनाभाव है | ( प्र० ) तो फिर यह पूछना है कि यह अव्यभिचार किससे ( ज्ञात ) होता है ?
For Private And Personal
क्योंकि इस
इस प्रसङ्ग में बौद्धों का कहना है कि ( १ ) तादात्म्य और ( २ ) कार्य की उत्पत्ति इन दोनों से ही अव्यभिचार ( व्याप्ति ) गृहीत होती है । ( १ ) ( तदुत्पत्तिमूलक व्याप्ति के मानने में यह युक्ति है कि ) दो वस्तुओं का आकस्मिक ( यादृच्छिक ) सम्बन्ध जिस प्रकार कभी होता है उसी प्रकार कभी नहीं भी होता है । अतः यह सम्बन्ध व्याप्ति का नियामक नहीं हो सकता । ( २ ) यदि उसी हेतु में साध्य की व्याप्ति मानें, जिसकी प्रतीति सपक्ष ( दृष्टान्त ) में हो और विपक्ष में उसकी प्रतीति न हो तो यह भी सम्भव नहीं होगा, ( सपक्षदर्शन और विपक्षादर्शन ) के बाद भी हेतु के विपक्ष में होने की निराकरण नहीं हो सकता । किन्तु जब यह निश्चय हो जाता है कि उत्पत्ति उस साध्य से हुई है तो फिर उक्त शङ्का, ( सम्भावना ) का निराकरण हो जाता है, क्योंकि कारण के बिना कार्य की स्वरूपस्थिति ही नहीं हो सकती । 'हेतु रूप कार्यं साध्य रूप कारण से उत्पन्न होता है' इस प्रकार का विनिश्चय' प्रत्यक्ष रूप उपलम्भ और अनुपलम्भ को मिला कर होता है | ( इनमें तीन कार्य सम्बन्धी हैं ) । ( १ ) उत्पत्ति पलब्धि, (२) कारण के उपलब्ध होने पर कार्य की उपलब्धि,
सम्भावना का 'इस हेतु की
निर्णय रूप 'तदुत्पत्ति
से
पांच कारणों से उत्पन्न
पहिले कार्य की अनुएवं (३) उपलब्ध