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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
गुणे प्रत्यक्ष
न्यायकन्दली
भावात् । स्मृत्यनन्तरभावी विकल्पः स्मृतिज एव नेन्द्रियार्थजः, तयोः स्मृत्या व्यवहितत्वादिति चेत् ? कि भोः सहकारी भावस्य स्वरूपशक्तिं तिरोधत्ते ? क्षित्युदकतिरोहितस्य बीजस्याङ्कुरजननं प्रति का वार्ता ? शब्दस्मरणनेन्द्रियार्थयोः क उपकारो येनेदं तयोः सहकारि भवतीति चेत् ? यथा विकल्पः स्वोत्पत्तावर्थेन्द्रिययोरन्दयव्यतिरेकावनुकरोति, तथा स्मृतेरपि । ततश्चेन्द्रियार्थयोरयमेव स्मरणेनोपकारो यदेतो केवलौ कार्यमकुर्वन्तौ स्मृतिसहकारिलाभात् कुरुतः। स्वरूपातिशयानाधायिनो न सहकारिण इति क्षणभङ्गप्रतिषेधावसरे प्रतिषिद्धम् ।
स्यादेतत्-कल्पनारहितं प्रत्यक्षम् । कल्पनाज्ञानं तु सविकल्पकम, तस्मादर्थे न प्रमाणमिति ।
अथ केयं कल्पना ? शब्दसंयोजनात्मिका प्रतीतिरेका, अर्थसंयोजनात्मिका चापरा विशिष्ट ग्राहिणी कल्पना । तदयुक्तम्, विकल्पानुपपत्तः । शब्दसंयोजनात्मिका प्रतीतिः किमर्थे शब्द संयोजयति ? किं वा स्वयं
व्यवहित होने के कारण बीज में भी कारणता कुण्ठित हो जाएगी)। (प्र.) (मुख्य कारण को कार्य के उत्पादन में उपकार करनेवाला ही सहकारि कारण है तदनुसार ) वाचकशब्द का स्मरण इन्द्रिय और अर्थ का क्या उपकार करता है जिससे शब्द के स्मरण को सविकल्पक प्रत्यक्ष का सहकारि कारण माने ? (उ०) जिस प्रकार सविकल्पक प्रत्यक्ष अपनी उत्पत्ति के लिए इन्द्रिय और अर्थ का अनुगमन करता है, उसी प्रकार वह स्मृति के अन्वय और व्यतिरेक के अनुगमन की भी अपेक्षा रखता है । इन्द्रिय और अर्थ को वाचक शब्द की स्मृति से यही उपकार होता हैं कि इसके बिना वे दोनों सविकल्पक प्रत्यक्ष रूप अपना काम नहीं कर पाते और स्मृति रूप सहकारी के रहने से कर पाते हैं। 'मुख्य कारण के स्वरूप में किसी विशेष का सम्पादन न करनेवाला सहकारी ही नहीं है' इस आक्षेप का हम क्षणभङ्गवाद के खण्डन के अवसर पर निराकरण कर चुके हैं ( देखिए पृ. १८५-१८६)
(प्र.) 'कल्पना' से भिन्न ज्ञान ही प्रत्यक्ष है, किन्तु सविकल्पक ज्ञान तो 'कल्पना' रूप है, अतः वह अपने अर्थ का ज्ञापक प्रमाण नहीं है।
(उ०) इस प्रसङ्ग में पूछना है कि यह 'कल्पना' कौन सी वस्तु है ? (१) (निर्विकल्पक ज्ञान के द्वारा ज्ञात ) अर्थ को ( उसके बोधक ) शब्द के साथ सम्बद्ध करनेवाली (शब्द संयोजनात्मिका) प्रतीति 'कल्पना' है (२) अथवा उसी अर्थ को विशेषण के साथ सम्बद्ध करनेवाली ( विशिष्ट विषयक ) अर्थ संयोजनात्मिका प्रतीति ही 'कल्पना' है ? किन्तु ये दोनों ही पक्ष अयुक्त हैं, क्योंकि इन दोनों पक्षों के सभी सम्भावित विकल्प अनुपपन्न ठहरते है ।
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