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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् युक्तानां योगजधर्मानुगृहीतेन मनसा स्वात्मान्तराकाशदिक्कालपरमाणुवायुमनस्सु तत्समवेतगुणकर्मसामान्य विशेषेषु समवाये चावितथं स्वरूपदर्शनमुत्पद्यते। वियुक्तानां पुनश्चतुष्टयसन्निकर्षाद् योगजधर्मानुग्रहसामर्थ्यात् सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टेषु प्रत्यक्षमुत्पद्यते । (१) युक्त और (२) वियुक्त भेद से योगी दो प्रकार के हैं, उनमें ( हम लोग जैसे साधारण जनों से विलक्षण ) 'युक्तयोगियों' को योगाभ्यास के द्वारा विशेष बलशाली मन से अपनी आत्मा, आकाश, दिक, काल, परमाणु, वायु और मन एवं इन सबों में रहनेवाले गुण, कर्म, सामान्य, विशेष एवं समवाय प्रभृति पदार्थों के भी यथार्थ स्वरूप का प्रत्यक्ष होता है। किन्तु ( वियुक्त योगियों को ) आत्मा, मन, इन्द्रिय और अर्थ इन ( चारों के ) तीन संयोग से ही योग जनित धर्मरूप विशेष बल के कारण सूक्ष्म ( परमाण्वादि ), व्यवहित ( दोवाल प्रभृति से घिरे हुए वस्तु ) और बहुत दूर की वस्तुओं का भी प्रत्यक्ष होता है।
न्यायकन्दलो क्वचिदात्मप्रदेशे वशीकृतस्य मनसस्तत्त्वबुभुत्साविशिष्टेनात्मना संयोगः । असम्प्रज्ञातश्च वशीकृतस्य मनसो निरभिसन्धिनिरभ्युत्थानात् क्वचिदात्मप्रदेशे संयोगः । तत्रायमुत्तरो मुमुक्षूणामविद्यासंस्कारविलयार्थमन्त्ये जन्मनि परिपच्यते, न धर्ममुपचिनोति, अभिसन्धिसहकारिविरहात् । नापि बाह्य विषयमभिमुखीकरोति, आत्मन्येव परिणामात् । पूर्वस्तु योगोऽभिसन्धिलहायः प्रतनोति धर्मम् । यदर्थ तत्त्वबुभुत्साविशिष्टश्च तदर्थमुद्द्योतयति, इति तेन योगेन योगिनः च्युतयोगा अपि योग्यतया योगिन उच्यन्ते । न च तेषामप्रक्षीणमलावरणानां तदानीमतीन्द्रियार्थदर्शनमस्त्यत आह- युक्तानामिति ।
युक्तानां समाध्यवस्थितानां योगजधर्मानुगृहीतेन मनसा स्वात्मनि, किसी द्रव्य के साथ संयोग ही 'अमम्प्रज्ञात' योग है। इन दोनों योगों में अन्तिम योग अर्थात् असम्प्रज्ञात समाधि का परिपाक मुमुक्षुओं को अन्तिम जन्म में होता है, जिससे संस्कार सहित अविद्या का विनाश हो जाता है। असम्प्रज्ञात समाधि से धर्म की उत्पत्ति नहीं होती है, क्योंकि धर्म का सहकारिकारण अभिलाषा या एषणा उस समय नहीं रहती है । उस समय किसी बाह्य विषय का भान भी नहीं होता है. क्योंकि उस समय अन्त:करण केवल अपने स्वरूप से ही परिणत होता है। पहिला योग अर्थात् सम्प्रज्ञातयोग विषयों की अभिलाषा की सहायता से धर्म को उत्पन्न करता है, जिससे तत्त्वज्ञान की इ-छा से युक्त योगी को सभी विषय प्रतिभात होते हैं। अतः सम्प्रज्ञात समाधि से युक्त
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