________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रकरणम् )
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् तस्याः सत्यप्यनेकविधत्वे समासतो द्वे विधे-विद्या चाविद्या चेति । तत्राविद्या चतुर्विधा-संशयविपर्ययानध्यवसायस्वप्नलक्षणा ।
संशयस्तावत् प्रसिद्धानेकविशेषयोः सादृश्यमात्रदर्शनादुमयविशेषानुस्मरणादधर्माच्च किंस्विदित्युभयावलम्बी विमर्शः
यह ( बुद्धि व्यक्तिशः ) अनन्त प्रकार की होने पर भी संक्षेप में (१) विद्या ( यथार्थज्ञान ) और अविद्या ( अयथार्थ ज्ञान ) भेद से दो प्रकार की है। इनमें अविद्या के (१) संशय (२) विपर्यय (३) अनध्यवसाय और (४) स्वप्न, ये चार भेद हैं।
जिन दो वस्तुओं के साधारण धर्म पहिले से ज्ञात हैं, उन दोनों के केवल साधारण धर्म रूप सादृश्य के ज्ञान, एवं पश्चात् दोनों के असाधारण धर्मों के स्मरण और अधर्म इन ( तीनों हेतुओं) से 'यह अमुक वस्तु है ? या उससे भिन्न ?' इस प्रकार के दो विरुद्ध विषयों का ज्ञान ही 'संशय' है। यह (१) अन्तःसंशय और (२) बहिःसंशय भेद से दो प्रकार का
न्यायकन्दली न्द्रियप्रणालिकया बाह्यविषयोपरक्तायास्तदाकारोपग्रहवती सत्त्वगुणाश्रया वृत्तिानम्, प्राप्तविषयाकारोपग्रहायां बुद्धौ प्रतिबिम्बितायाश्चेतनाशक्तेस्तवृत्त्यनुकार उपलब्धिः । तथा चाह स्म भगवान् पतञ्जलि:"अपरिणामिनी हि भोक्तृशक्तिरप्रतिसङ्कमा च परिणामिन्यर्थे प्रतिसंकान्तेव तद्वत्तिमनुभवतीति' इति । भोक्तृशक्तिरिति चितिशक्तिरुच्यते, सा चात्मैव । परिणामिन्यर्थ इति बुद्धितत्त्वे प्रतिसङ्क्रान्तेवेति प्रतिबिम्बिलेवेत्यर्थः । तद्वृत्तिमनुभवति बुद्धौ प्रतिबिम्बिता सती बुद्धिच्छायापत्त्या बुद्धिवृत्यनुकारिणी वृत्ति ही ज्ञान है, जिसमें सत्त्वगुण की प्रधानता रहती है, एवं जो ज्ञानेन्द्रिय के मार्ग से बुद्धि के निकलने पर विषयों के साथ उसके सम्बद्ध होने के कारण उत्पन्न होती है । एवं विषय के आकार में परिणत बुद्धि (ज्ञान में) प्रतिबिम्बित पुरुष के उस वृत्ति के अनुकरण को ही 'उपलब्धि' कहते हैं। जैसा कि भगवान् पतञ्जलि ने कहा है कि भोक्तृशक्ति अपरिणामिनी, एवं किसी में प्रतिबिम्बित होनेवाली नहीं है, किन्तु (बुद्धिरूप) परिणामी अथ में प्रतिबिम्बित की तरह उसकी वृत्तियों का अनुभव करती है। अभिप्राय यह है कि चितिशक्ति को ही भोक्तृशक्ति कहते हैं जो वस्तुतः आत्मा ही है। परिणामी अर्थ में- अर्थात् बुद्धितत्त्व में 'प्रतिसंक्रान्तेव' अर्थात् प्रतिबिम्बित की तरह तवृत्तिमनुभवति' अर्थात् बुद्धि को छाया पड़ने के कारण वह (चितिशक्ति ) बुद्धि की वृत्तियों का अनुकरण करने सी लगती है। सुखादि आकार के (अहं सुखो-इत्यादि
For Private And Personal