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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
४३५
प्रशस्तपादभाष्यम् सादिष्वनध्यवसायो भवति। तत्र सत्ताद्रव्यत्वपृथिवीत्ववक्षत्वरूपवत्त्वादिशाखाद्यपेक्षोऽध्यवसायो भवति । पनसत्वमपि पनसेष्वनुवत्तमाम्रादिभ्यो व्यावृत्तं प्रत्यक्षमेव, केवलं तूपदेशाभावाद् विशेषसंज्ञाप्रतिपत्तिर्न भवति । अनुमानविषयेऽपि नारिकेल डीपवासिनः सास्नामात्रदर्शनात् को नु खल्वयं प्राणी स्यादित्यनध्यवसायो भवति । भी सत्ता, द्रव्यत्व, पृथिवीत्व, वृक्षत्व, रूपवत्त्व एवं शाखा प्रभृति धर्मों के साथ वह वृक्ष निश्चित ही है । एवं विभिन्न सभी पनसों ( कटहल ) को एक रूप से समझानेवाली एवं पनस को आम्रादि फलों से भिन्न रूप में समझानेवाली पनसत्व जाति का भी निश्चय है ही। केवल उसे यह विशेष रूप से ज्ञात नहीं रहता है कि 'इसका नाम क्या है ?' नारिकेल द्वीप में रहनेवालेको केवल सास्ना को देखने से जो यह कौन सा प्राणी होगा' इस आकार का अनध्यवसाय होता है, वह आनुमानिक विषय का अनध्यवसाय है।
न्यायकन्दली प्रसिद्ध राजनि कोऽप्यनेन पथा गत इति ज्ञानमात्रभनवधारितविशेषमनध्यवसायः। अप्रसिद्धष्वपरिज्ञानादेवानध्यवसायो यथा वाहीकस्य पनसादिष्वनध्यवसायो भवति, दक्षदेशोद्भवस्य पनसादिष्वनध्यवसाय इत्यर्थः । तत्रापि पनसे सत्त्वद्रव्यत्वपृथिवीत्ववृक्षत्वरूपत्वादिशाखाद्यपेक्षोऽध्यवसाय एव, द्रव्यमेतत् पार्थिवोऽयं वृक्षोऽयं रूपादिमान् शाखादिमांश्चेत्यवधारणात् । पनसत्वमपि पनसेष्वनुवृत्तमाम्रादिभ्यो व्यावृत्तं निर्विकल्पकप्रत्यक्षमेव । केवलं त्वस्य पनसशब्दो नामधेयमित्युपदेशाभावाद् विशेषसंज्ञाप्रतिपत्तिर्न भवति पनसशब्दवाच्योऽयमिति प्रतिपत्तिर्न भवति, किन्तु किमप्यस्य नामधेयं 'किमित्यालोचनमात्रम्' अर्थात् किसी प्रसिद्ध राजा के जाने पर भी कोई इस रास्ते से गया है। इस प्रकार का (अनवधारणात्मक ) ज्ञान-जिससे किसी के असाधारण धर्म का निर्धारण नहीं होता-~-'अनध्यवसाय' है। अभिप्राय यह है कि 'असिद्धों में' अर्थात् पहिले से बिलकुल अज्ञात विषयों में 'अपरिज्ञान से' अर्थात् वस्तुओं के सामान्य विषयक यथार्थ ज्ञान के न रहने से 'अनध्य व साय' होता है। जैसे कि पालकी ढोने वाले को एवं दक्षिण देश में रहने वालों को पनस के ( कटहल ) वृक्ष में अनध्यवसाय होता है। यद्यपि वहाँ भी सभी वृक्षों में रहनेवाले शाखादि के ज्ञान से पनस में सत्ता द्रव्यत्व, पृथिवील, वृक्षत्व एवं रूपवत्त्वादि विषयक (यह सत् है ) यह द्रव्य है, यह पार्थिव है, यह वृक्ष है, यह रूपवाला है, यह शाखा से युक्त है इत्यादि प्रतीतियाँ उन ( दक्ष देश के वासियों ) को भी होती ही हैं, एवं सभी पनसों में रहनेवाले एवं आम प्रभृति में न रहनेवाले पनसत्व का निर्विकल्पक प्रत्यक्ष भो होना ही है
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