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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली तत्रेति । तयोविद्याविद्ययोर्मध्ये अविद्या चतुर्विधा चतुष्प्रकारा संशयविपर्ययानध्यवसायस्वप्नलक्षणा।।
नन्वविद्या चतुविधेति परिसंख्यानानुपपत्तिः, रूढस्य तर्कज्ञानस्यापि सम्भवात् । अनुभूयते ह्यन्तरा संशयं निर्णयं च तर्कः । तथा हि-उत्पत्तिधर्मक आत्मेत्येके। अनुत्पत्तिधर्मक इत्यपरे। ततो विप्रतिपत्तेः किस्विदयमुत्पत्तिधर्मा आहोस्विदेवं न भवतीति संशये विचारात्मकस्तर्कः प्रवर्तते। यद्ययमुत्पत्तिधर्मकः, तदैकस्यानेकशरीरादिसंयोगलक्षणः संसारस्तदत्यन्तविमोक्षलक्षणश्चापवर्गो नोपपद्यते। अनुत्पत्तिधर्मके तु ज्ञातरि स्यातां संसारापवर्गावित्यनुत्पत्तिधर्मकेणानेन भवितव्यमिति ।
किमस्य सम्भावनाप्रत्ययस्य प्रयोजनम् ? तत्त्वज्ञानमेव, प्रतिपक्षनिश्चयवत प्रतिपक्षसंशयेऽपि हि हेतोरप्रवृत्तिरेव, वस्तुनो द्वैरूप्याभावात् । यथार्भट्टमिश्राः
यावच्चाव्यतिरेकित्वं शतांशेनापि शङ्कयते । विपक्षस्य कुतस्तावद्धतोर्गमनिकाबलम् ॥ इति ।
के मानने में) कोई दोष नहीं है। 'तस्याः ' इत्यादि से कहते हैं कि विषयों के भेद से बुद्धियों के असंख्य भेद होने पर भी संक्षेपतः उसके दो ही प्रकार हैं । सन्देह से भिन्न वह निश्चयात्मक ज्ञान ही 'विद्या' है, जिसके विषय बाधित न हों। यहाँ जिस किसी प्रकार से विषयों का प्रतिपादन ही इष्ट है अतः पीछे कही गयी अविद्या का भी 'तत्र' इत्यादि से पहिले ही निरूपण करते हैं । 'तयोः' अर्थात् विद्या और अविद्या इन दोनों में अविद्या चतुर्विधा' अर्थात् (१) संशय (२) विपर्यय (३) अनध्यवसाय और (४) स्वप्न भेद से चार प्रकार की हैं।
(प्र.) 'अविद्या चार ही प्रकार की है' संख्या का यह नियम ठीक नहीं है क्योंकि अविद्या के अन्तर्गत इनसे भिन्न तर्क रूप पांचवें ज्ञान की भी सम्भावना है । क्योंकि संशय और विपर्यय के मध्यवर्ती तर्क का भी अनुभव होता है। जैसे कि कोई कहता है कि आत्मा की उत्पत्ति होती है। दूसरे उसे अनुत्पत्तिशील कहते हैं। इस विप्रतिपत्ति से यह संशय होता है कि 'आत्मा उत्पत्तिशील है या नहीं ?' इस संशय के बाद यह विचार रूप तर्क उपस्थित होता है कि अगर आत्मा उत्पत्तिशील वस्तु हो तो फिर अनेक शरीरों के साथ इसका सम्बन्ध रूप संसार, और उस सम्बन्ध के अत्यन्त विनाश रूप अपवर्ग ये दोनों ही अनुपपन्न होंगे। यदि इसे अनुत्पत्तिधर्मक मान लेते हैं, तो फिर कथित संसार और अपवर्ग दोनों ही उपपन्न हो जाते हैं । अतः इसे अनुत्पत्तिधर्मक ही होना चाहिए।
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