________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रकरणम् ।
भाषानुवादसहितम्
४१३
प्रशस्तपादभाष्यम् बहिर्द्विविधः-प्रत्यक्षविषये चाप्रत्यक्षविषये च । तत्राप्रत्यक्षविषये तावत् साधारणलिङ्गदर्शनादुभयविशेषानुस्मरणादधर्माच्च संशयो भवति । यथाष्टव्यां विषाणमात्रदर्शनाद् गौर्गक्यो वेति । प्रत्यक्षविषयेऽपि स्थाणुपुरुषयोरूयतामात्रसादृश्यदर्शनाद्
बहिःसंशय दो प्रकार का है (१। जिसके विषय प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा गृहीत हों एवं (२) जिसके विषय प्रत्यक्ष के द्वारा गृहीत न हो सकें। इनमें अप्रत्यक्षविषय का बहिःसंशय वह है जो दोनों कोटियों में रहनेवाले ( साधारण) धर्म के ज्ञान, एवं दोनों कोटियों में से प्रत्येक के असाधारण धर्म की अनुस्मृति ( पश्चात्स्मरण ) और अधर्म इन कारणों से उत्पन्न होता है। जैसे जङ्गल में ( जाने पर ) केवल सींग के देखने पर यह संशय होता है कि यह ( सींगवाला) गो है या गवय ? प्रत्यक्ष के द्वारा गृहीत होनेवाले विषयों के संशय (का यह उदाहरण है कि ) स्थाणु और पुरुष दोनों में समान रूप से रहनेवाली उच्चता ( ऊँचाई ) रूप से सादृश्य का ज्ञान, दोनों में से प्रत्येक में रहनेवाली वक्रता
न्यायकन्दली बुद्धेरेकत्वे विषयाकारवतीनां तद्वत्तीनामप्येकत्वात् त्रिचतुरादिप्रत्ययो दुर्लभः, परस्परविलक्षणाकारसंवेदनाभावाद् बुद्धचारूढाकारमात्रवेदित्वाच्च पुरुषस्य । यथोक्तम्- 'बुद्धेः प्रतिसंवेदी पुरुषः' इति । वृत्तीनां वा नानात्वे बुद्धरपि नानात्वादेकत्वव्याघात इत्यादि दूषणमूह्यम् ।
बृद्धभेदं निरूपति—सा चानेकप्रकारेति । अत्र कारणमाह-अर्था
उत्पत्ति और विनाश दोनों ही होते हैं। एवं जिसका कोई दूसरा आश्रय है। जिसमें उसकी उत्पत्ति से प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों ही उपपन्न होती हैं। (बुद्धि के प्रसङ्ग में) इन्हीं दोनों प्रकारों का प्रत्येक आत्मा अनुभव करता है, दूसरे का नहीं। (इस प्रसङ्ग में यह प्रश्न भी उठता है कि) बुद्धि की यह कथित 'वृत्ति' बुद्धि से भिन्न है या अभिन्न ? साख्याचार्यगण वृत्ति और उसके आश्रय दोमों में अत्यन्त अभेद मानते हैं, अतः (उनके मत से) ये दोनों भिन्न तो हो नहीं सकते। यदि वृत्ति और वृत्तिमान में भेद मानें तो ये तीन है, ये चार ई' इत्यादि विभिन्न प्रकार की प्रतीतियाँ दुर्लभ होंगी, क्योंकि बुद्धि के एक होने के कारण उसकी वृति भी एक ही होगी, अतः वृत्तियों में परस्पर विशेष नहीं हो सकता, क्योंकि सभी आकार एक ही बुद्धि में आरूढ हैं । जैसा कि (भगवान् पतञ्जलि ने)
For Private And Personal