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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
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प्रशस्तपादभाष्यम् गाद् द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशः, पिण्डकर्मणा दिपिण्डस्य च विभागः क्रियत इत्येकः कालः। ततो यस्मिन्नेव काले सामान्यबुद्धिरुत्पद्यते, तस्मिन्नेव काले द्रव्यारम्भकसंयोगविनाशात् पिण्डविनाशः, पिण्डसमय विभाग से द्रव्य के उत्पादक संयोग का नाश, और ( उक्त अवयविरूप) पिण्ड की क्रिया से पिण्ड का पूर्व दिक्प्रदेश से विभाग, ये दोनों काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद जिस समय सामान्य विषयक बुद्धि उत्पन्न होती है, उसी समय ( अवयवि) द्रव्य के उत्पादक संयोग के विनाश से (परत्वादि के आधारभूत अवयवि) पिण्डद्रव्य का विनाश, और पिण्ड के विनाश से (पूर्वदिक् प्रदेश के साथ ) पिण्डसंयोग का विनाश भी होता
न्यायकन्दली विनाशः, पिण्डविनाशाच्च पिण्डसंयोगविनाशः, ततो गुणबुद्धिसमकालं पिण्डदिपिण्डसंयोगविनाशात् परत्वस्य विनाशः। अपेक्षाबुद्धिविनाशस्तु न कारणम् , तदानीमेव सामान्यबुद्धस्तस्य सम्भवात् ।।
संयोगापेक्षाबुद्धयोयुगपद्विनाशादपि कथम् । यदा परत्वमुत्पद्यते तदा परत्वस्याधारे द्रव्ये कर्म, ततो यस्मिन्नेव काले परत्वसामान्यबुद्धिरुत्पद्यते परत्वस्याधारे, तस्मिन्नेव काले पिण्डकर्मणा दिपिण्डविभागः क्रियते। ततः सामान्यबुद्धितोऽपेक्षाबुद्धिविनाशो दिपिण्डविभागाच्च दिपिण्डसंयोगहै। एवं अवयवी के विनाश से उसमें रहने वाले संयोग का भी विनाश होता जाता है । इसके बाद जिस समय परत्व गुण (विशिष्टद्रव्य ) की बुद्धि उत्पन्न होती है, उसी समय परत्व का विनाश भी होता है । अपेक्षाबुद्धि का विनाश यहाँ परत्व के विनाश का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि परत्र के विनाश के काल में ही परत्व में रहनेवाले सामान्य के ज्ञान से वह उत्पन्न होती है।
(६)(प्र. ) एक ही समय संयोग और अपेक्षाबुद्धि दोनों के विनाश से परत्व का विनाश किस प्रकार होता है ? ( उ० ) ( इस प्रकार होता है कि ) जिस समय परत्व उत्पन्न होता है उसी समय परत्व के आधार भूत द्रव्य में क्रिया भी उत्पन्न होती है । इसके बाद जिस समय परत्व में रहने वाले सामान्य का ज्ञान उत्पन्न होता है, उसी समय परत्व के आधारभूत द्रव्य में उसी में रहनेवाली क्रिया से दिशा के साथ उसका विभाग भी उत्पन्न होता है। इसके बाद परत्व में रहनेवाले सामान्य विषयक बुद्धि के विनाश से अपेक्षाबुद्धि का विनाश उत्पन्न होता है, एवं दिशा और ( परत्व के
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