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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
बुद्धिरुत्पद्यते । ततो विभागाद् यस्मिन्नेव काले संयोगविनाशः, तस्मिन्नेव काले परत्वमुत्पद्यते । ततः संयोगविनाशाद् द्रव्यविनाशः, तद्विनाशाच्च तदाश्रितस्य गुणस्य विनाशः !
द्रव्यापेक्षा बुद्धयोर्युगपद्विनाशादपि कथम् ? यदा परत्वाधारावयवे
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[ गुणे परत्वापरत्व
इसके बाद जिस समय उक्त विभाग के द्वारा परत्वादि के आधारभूत द्रव्य के उत्पादक दोनों अवयवों के संयोग का नाश होता है, उसी समय परत्वादि गुणों की उत्पत्ति भी होती है । इसके बाद ( उक्त ) संयोग के विनाश से ( परत्वादि के आधारभूत ) द्रव्य का नाश होता है, एवं द्रव्य के विनाश से उसमें रहनेवाले परत्वादि गुणों का भी नाश हो जाता है ।
( ४ ) एक ही समय ( परत्वादि के आधारभूत ) द्रव्य और अपेक्षाबुद्धि इन दोनों के विनाश से परत्वादि गुणों का विनाश ( कहाँ और किस
न्यायकन्दली
संयोगविनाशाद् द्रव्यविनाशः । ततो द्रव्यविनाशात् तदाश्रितस्य गुणस्य विनाशः । तदानीमेव परत्वसामान्यज्ञानादपेक्षाबुद्धेविनाशः, आश्रयविनाशाच्च दिपिण्डसंयोगविनाश इत्यनयोर्न हेतुत्वं सहभावित्वात् ।
द्रव्यापेक्षा बुद्धयोर्युगपद्विनाशादपि कथम् । यदैव परत्वाधारावयवे कर्मोत्पद्यते तदेवापेक्षा बुद्धिरुत्पद्यते । कर्मणा चावयवान्तराद् विभागः क्रियते, परत्वस्योत्पत्तिरित्येकः कालः । ततो यस्मिन्नेव कालेऽवयवविभागाद् द्रव्यारम्भक
होता है, उसी समय अपेक्षाबुद्धि के द्वारा परत्व की भी उत्पत्ति होती है । इसके बाद उक्त संयोग के विनाश से ( अवयवि ) द्रव्य का विनाश होता है। चूँकि परत्वगुण में रहनेवाले सामान्य के ज्ञान से अपेक्षा बुद्धि का विनाश एवं ( उक्त अवयवी रूप ) अभय के विनाश से दिशा और पिण्ड के संयोग का विनाश, ये दोनों भी उसी समय उत्पन्न होते हैं, अतः ( परत्व के विनाशक रूप में कथित होने पर भी ) ये दोनों प्रकृत में परत्वादि के विनाशक नहीं हो सकते ।
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( ४ ) एक ही समय उत्पन्न होनेवाले द्रव्य का विनाश, और अपेक्षा बुद्धि का विनाश इन दोनों से किस प्रकार परत्वादि का विनाश होता है ? 'द्रव्यापेक्षा बुद्धयोः' इत्यादि से इस प्रश्न का उपपादन किया गया है, एवं 'यदेव परत्वाधारावयबे' इत्यादि से उसके समाधान का उपपादन हुआ है । ( जहाँ ) जिस समय परत्व के